2020 Meru Trayodashi: इस दिन तप करने से मिलता है मोक्ष
Indian Astrology | 22-Jan-2020
Views: 6739जैन धर्मग्रंथ, आचारांग सूत्र में लिखा है....
विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो।
अर्थात् “जो जन (कामनाओं को) पार कर गए हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं। यह संसार, यह जन्म-जरा-मृत्यु का चक्कर भी एक बंधन है। कामनाओं के विषयवासनाओं के जाल में फंसा हुआ व्यक्ति मुक्ति के सुख का आनंद नहीं पा सकता।”
बंधन बेहद बुरा शब्द है? कोई भी मनुष्य बंधन में नहीं रहना चाहता। वह आज़ाद होना चाहता है। मगर वह अपनी ही वासनाओं में फंसा है। ख़ुद से ख़ुद में ही कैद है। जैन धर्म के विभिन्न त्योहारों का उद्देश्य मनुष्य को ख़ुद की ही कैद से आज़ाद कराना है। भौतिक सुख़ से दूर ये त्योहार कुछ नियमों से बंधे होते हैं ताकि आपको बंधन से मुक़्त कर सकें। आप अपनी वासनाओं, अपने डर (मृत्यु का भय) पर विजय प्राप्त कर आत्म-संयमी बन सकें।
जैन धर्म का ऐसा ही एक त्योहार है मेरू त्रयोदशी (meru trayodashi)। यह त्योहार जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव (या ऋषभनाथ) के निर्वाण प्राप्त करने की ख़ुशी में मनाया जाता है। निर्वाण, यानि सभी वासवाओं का मर जाना, दु:ख से पूरी तरह छुटकारा पा लेना! यहां जानिए, इस त्योहार के बारे में विस्तार से...
क्या है मेरू त्रयोदशी?
मेरू त्रयोदशी जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो पिंगल कुमार (Pingal Kumar) की याद में मनाया जाता है। मान्यता है कि पिंगल कुमार ने मेरू त्रयोदशी तप और 5 मेरू का संकल्प पूरा किया था। इस दिन जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ (ऋषभदेव) ने निर्वाण प्राप्त किया था इसलिए इसे “निर्वाण-कल्याणक” (Nirvan Kalyanaka). का दिन भी कहा जाता है।
कब है मेरू त्रयोदशी?
मेरू त्रयोदशी हर साल पौष माह के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को मनाई जाती है। लेकिन विभिन्न कैलेंडरों में तिथियों का निर्धारण अलग-अलग होता है इसलिए हर साल मेरू त्रयोदशी की तिथि अलग हो सकती है। हेमचंद्र लिखित जैन धर्मग्रंथ तिरसठ शलाका पुरुष चरित्र (Trishashthi-Shalaka-Purusha-caritra) में मेरी त्रयोदशी के बारे में कहा गया है कि यह माघ माह के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी मनाई जाती है। अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि जनवरी और मार्च महीने के बीच में पड़ती है।
जैन धर्म के विभिन्न त्योहारों की तिथियों का निर्धारण कुछ विशेष संख्याओं के आधार पर होता है। मेरू त्रयोदशी का संबंध त्रयोदश अर्थात् तेरह से है। साल 2020 और अगले कुछ वर्षों के लिए मेरू त्रयोदशी की तिथियां निम्न हैं:
वर्ष मेरू त्रयोदशी की तिथियां
2020 बुधवार, 22 जनवरी
2021 मंगलवार, 9 फरवरी
2022 रविवार, 30 जनवरी
2023 गुरुवार, 19 जनवरी
मेरू त्रयोदशी का महत्व
मान्यता है कि इस दिन व्रत, दान और तप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस तप को पूरा करने के लिए प्रत्येक वर्ष मेरू त्रयोदशी के दिन 13 वर्ष 13 महीने के लिए व्रत रखा जाता है। इसके लिए कुछ नियमों का पालन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन नियमों का पालन कर मनुष्य अपनी तृष्णा और वासना पर काबू पाकर आत्म संयमी बनती है और उसे तमाम दु:खों से छुटकारा मिलता है। अगर वह नियमपूर्क यह तप पूरा करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मेरी त्रयोदशी 2020: ऋषभदेव के निर्वाण-कल्याणक का दिन
मेरू त्रयोदशी को भगवान ऋषभदेव के निर्वाण-कल्याणक का दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान ऋषभदेव ने कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया था।
जैन धर्मग्रंथों में भगवान ऋषभनाथ का उल्लेख कई नामों से मिलता है। उन्हें आदिनाथ (विश्व के पहले गुरु), आदिश जिन (पहला विजेता), आदि पुरुष (पहला परिपूर्ण पुरुष), इक्क्षवाकु, विधाता आदि नामों से संबोधित किया गया है। भगवान ऋषभदेव का उल्लेख कई हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलता है। ऋग्वेद में ऋषभदेव की चर्चा वृषभनाथ और कहीं-कहीं वातरशना मुनि के रूप में मिलती है। शिवपुराण में उन्हें शिव के 28 अवतारों में से एक माना गया है।
जैन धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान ऋषभनाथ ने माघ माह के कृष्णपक्ष के 14वें दिन अष्टपद (प्रसिद्ध कैलाश पर्वत) पर निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया था। निर्वाण-कांड के इस श्लोक में इसका उल्लेख मिलता है:
अट्ठावयम्मि उसहो, चम्पाए वासुपुज्ज जिणणाहो,
उज्जन्ते णेमिजिणो, पावाए णिब्बुदो महावीरो ||१||
अर्थात्, अष्टपद पर भगवान ऋषभ (ऋषभदेव), चंपा पर वासुपूज्य, उर्जयन्त (गिरनार) पर भगवान नेमि (नेमिनाथ) और पाव पर भगवान महावीर को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी।
जैन धर्मग्रंथों के अनुसार कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए ऋषभदेव ने कई क्षेत्रों की पद यात्रा की थी। इसी पद यात्रा के दौरान उन्हें रास्ते में अष्टपद पर्वत मिला। (स्वर्ग से) देव (ईश्वर) ने इस पर्वत पर एक काल्पनिक गुफा (समवसरण) का निर्माण किया। ऋषभदेव ने यहां लंबे अरसे तक तप किया और अंतत: 84 लाख पर्व में कैवल्य ज्ञान प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त किया। उनके सभी उपदेश 14 ग्रंथों में संकलित हैं जिन्हें पर्व कहते हैं।
मेरू त्रयोदशी से जुड़ी परंपराएं
मेरू त्रयोदशी से जुड़ी महत्वपूर्ण परंपराएं व अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
- जैन धर्म के अधिकतर त्योहारों की तरह ही मेरू त्रयोदशी का संबंध भी एक विशेष संख्या से है। त्रयोदशी (तेरहवीं) तिथि से संबंधित होने के कारण इसके कुछ अनुष्ठानों में इस संख्या का ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के लिए मेरू त्रयोदशी तप 13 वर्ष या 13 महीने में पूर्ण होता है।
- मेरू त्रयोदशी के अधिकतर अनुष्ठान जैन धर्म के रोज़ के आम अनुष्ठानों, जैसे कि रोज़ मंदिर जाकर ईश्वर की आराधना करना, गुरु के उपदेश सुनना से भिन्न होते हैं। इनका मकसद मनुष्य को वासना और तृष्णा के बंधन से मुक्त कर तमाम दु:खों से निजात दिलाना है।
- इस दिन निर्जला व्रत रख 5 मेरू का संकल्प लिया जाता है और भगवान ऋषभदेव की पूजा की जाती है।
मेरू त्रयोदशी 2020: पूजा विधि और मंत्र
- इस दिन सभी श्रद्धालु सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूरे दिन निर्जला व्रत करने का संकल्प लें।
- मंदिर में भगवान ऋषभनाथ की प्रतिमा स्थापित करें।
- उनकी प्रतिमा के सामने चांदी के 5 मेरू (Silver Meru) रखें। बीच में 1 बड़ा मेरू और उसके चारों ओर 4 छोटे-छोटे मेरू रखें।
- प्रत्येक मेरू के सामने स्वस्तिक का निशान बनाएं और धूप-दीप जलाकर घर की परंपरा के अनुसार भगवान ऋषभनाथ की पूजा करें।
- उसके बाद इस मंत्र का 2000 बार जाप करें:
ऊँ ह्रीम श्री ऋषभदेवाय पारमगत्या नम:
- पूजा संपन्न करने के बाद साधु और ज़रूरतमंद लोगों को अन्न वस्त्रादि दान करें और उसके बाद अपना व्रत खोलें।
- इस तरह 13 महीने या अधिकतम 13 वर्ष के लिए प्रत्येक मास की कृष्ण त्रयोदशी को मेरू त्रयोदशी का व्रत करें।
हालांकि मेरू त्रयोदशी का व्रत प्रत्येक मास की कृष्ण त्रयोदशी को किया जाना चाहिए। लेकिन अगर हर माह व्रत करना संभव न हो तो श्रद्धालु अपनी क्षमतानुसार नियमों का पालन करें और भगवान ऋषभनाथ की आराधना करें।