जन्म कुंडली में धन योग है या नहीं - Dhan Yog in Janam kundali
Indian Astrology | 01-Jun-2020
Views: 18169आज के समय में पैसे को अत्यधिक महत्व दिया जाने लगा है। अच्छे लाइफ स्टाइल के लिए पैसे का होना बहुत जरूरी है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त प्रत्येक व्यक्ति को धन की जरूरत होती है वस्तुतः जीवन यापन के लिए धन तो सब के पास होता ही है परन्तु सभी लोग धनी नहीं होते। धनी तो वही होते हैं, जिसके भाग्य में धन लाभ का योग होता है।
कहा जाता है कि यदि धन आना होता है तो किसी न किसी तरह से लक्ष्मी आएगी ही। कई बार यह भी देखने में आता है कि धन तो आता है परन्तु टिक नहीं पाता है। अक्सर यह भी देखा गया है कि कठिन परिश्रम के बावजूद उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना मिलना चाहिए। इसका कारण उनकी जन्मकुंडली में श्रेष्ठ धनयोग का अभाव होना है।
आइए जानते हैं जन्मकुंडली में धन योग कैसे बनते हैं और उनका जातक के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आपकी जन्मकुंडली में धन सुख या धनी बनने के लिए राजयोग, गजकेसरी योग, महाधनी योग, बुधादित्य योग, चन्द्र-मंगल योग, पञ्च महापुरुष योग आदि का होना बहुत जरुरी है। धनवान बनने के लिए इन योगों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
जन्मकुंडली में धन की दृष्टि से शुभ तथा अशुभ भावों एवं ग्रहों के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का सविस्तार से वर्णन किया गया है। कुंडली का प्रथम भाव – व्यक्ति स्वयं, दूसरा भाव – धन भाव, पंचम भाव – त्रिकोण, लक्ष्मी स्थान, नवम भाव – भाग्य स्थान, दशम भाव – कर्म भाव, एकादश भाव – लाभ भाव होता है|
जन्म कुंडली में धन योग के लिए विद्यमान बारह भावों में उपर्युक्त भाव का महत्त्वपूर्ण स्थान है उक्त भाव तथा भाव के स्वामी का एक दूसरे से केंद्र अथवा त्रिकोण आदि शुभ स्थानों में स्थित होकर शुभ दृष्ट अथवा शुभ युति से संबंध स्थापित होता है तब व्यक्ति करोड़ो की सम्पत्ति का मालिक होकर सुख-सुविधा का उपभोग करता हुआ जीवन व्यतीत करता है।
कुंडली में धनवान बनने के योग | How to become rich in Kundli
- यदि जन्म व चंद्र कुंडली में द्वितीय भाव अर्थात धन भाव का स्वामी एकादश भाव ( लाभ भाव) अथवा लाभ भाव का स्वामी धन भाव में स्थित हो या दोनों भाव का स्वामी एक दूसरे भाव में जिसे परिवर्तन योग भी कहा जाता है, उसमे हो तो व्यक्ति महाधनी होता है।
- एकादशेश पंचम भाव में, तथा पंचमेश एकादश भाव में स्थित हो और भाग्येश उसे देख रहा हो तो जातक धनवान होता है यदि इसके साथ किसी भी तरह से धनेश या धन भाव के साथ सम्बन्ध बन रहा हो तब अत्यंत श्रेष्ठ धनयोग बनता है।
- धनेश तथा लाभेश दोनों एक साथ क्रेंद्र या त्रिकोण में स्थित हों और यदि भाग्येश द्वारा दृष्ट हों तो जातक अवश्य ही धनवान होता है।
- कुंडली के त्रिकोण या केन्द्र भावों में गुरु, शुक्र, चन्द्रमा और बुध बैठे हों या फिर 3, 6 और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहु, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहु, शनि, शुक्र या बुध की दशा में असीम धन प्राप्त करता है।
- चंद्र मंगल योग आपकी कुंडली में केंद्र या त्रिकोण में बन रहा हो तथा धन कारक बृहस्पति से दृष्ट हो या युति हो तो जातक धनी होता है।
- गुरु जब दसवें या ग्यारहवें भाव में और सूर्य व मंगल चौथे और पांचवें भाव में हों या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो तो व्यक्ति प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।
- नवमेश, दशमेश तथा पंचमेश का सम्बन्ध धनेश, लाभेश या इस भाव से सम्बन्ध किसी भी तरह से बन रहा हो तो जातक महाधनी होता है और यदि यह सभी ग्रह एक दूसरे से केंद्र या त्रिकोण में हों या एक ही भाव में स्थित हों, तो जातक अवश्य ही करोड़ों का मालिक होता है। ऐसा जातक गरीब घर में भी जन्म लेकर धनवान अवश्य बनता है|
- यदि भाग्येश शुक्र की धनेश तथा लाभेश बृहस्पति के साथ युति हो या बृहस्पति उसे देख रहा हो तो जातक प्रचुर धन का मालिक होता है, यह योग केवल कुम्भ लग्न या कुम्भ राशि के लिए ही होता है।
- लाभेश, नवमेश तथा द्वितीयेश (धनेश) इनमें से कोई एक भी ग्रह लग्न अथवा केंद्र में स्थित हो और बृहस्पति द्वितीय, पंचम अथवा एकादश भाव का स्वामी होकर केंद्र में हो तो जातक धनी होता है।
- यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहु बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुआ, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।
- बुध, शुक्र और शनि जिस भाव में एक साथ हों वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत उन्नति कर धनवान बना देता है।
- मंगल चौथे, सूर्य पांचवें और गुरु ग्यारहवें या पांचवें भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, कृषि या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती जाती है। इसे करोड़पति योग कहते हैं।
- गुरु व चंद्र की केंद्रगत स्थिति के द्वारा गजकेसरी योग का निर्माण होता है। इस योग में चंद्र पर गुरु का शुभ प्रभाव होता है। यह योग हर प्रकार के धन को देने में सक्षम है।
- दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन पाता है।
- यदि अष्टम भाव का मालिक उच्च का हो तथा धनेश व लाभेश के प्रभाव में हों तो व्यक्ति को निश्चित रूप में अचानक धन लाभ होता है।
- बुध, शुक्र और गुरु में से कोई दो गृह एक साथ हों तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, कथाकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।
- यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हो और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसाय के द्वारा अतुलनीय धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।
- शुक्र का जन्म कुंडली में उच्च होना या बली होना शुक्र योग बनाता हैं, इसके अतिरिक्त शुक्र की बारहवीं स्थिति भी इस योग का निर्माण करती है। किसी भी जन्म कुंडली में शुक्र की मजबूत स्थिति धनवान बनाने वाली होती है।
- पंचम भाव में धन या मीन का गुरु स्थित हो और लाभ स्थान बुध-युक्त हो तो जातक धनी होता है।
- पांचवें घर में सिंह के सूर्य हो और लाभ स्थान में शनि, चंद्र-शुक्र से युक्त हो तो जातक धनी होता है।
- किसी जातक की जन्म कुण्डली में यदि मंगल ग्रह शुक्र ग्रह के साथ युग्म में स्थित हो तो ऐसे जातक को स्त्री पक्ष से धन की प्राप्ति होती है।
- जिस भी जातक की कुंडली में शुक्र लग्न से अथवा चन्द्रमा से केन्द्र के घरों में स्थित हो अर्थात शुक्र यदि कुंडली में लग्न अथवा चन्द्रमा से 1, 4, 7 अथवा 10वें घर में वृष, तुला अथवा मीन राशि में स्थित है तो कुंडली में मालव्य योग बनता है। यह भी सुख और धन देने वाला योग है।
- मंगल का रूचक योग, बुध का भद्र योग, गुरु का हंस योग, और शनि के शश योग में भी व्यक्ति धनवान बनता है।
यदि आपकी कुंडली में धनवान बनने का योग है और आप अपना कर्म कर रहे हैं तो अवश्य ही धनवान बनेंगे और भौतिक सुख-सुविधा का उपभोग करेंगे। उपर्युक्त बताये गए धन के ज्योतिषीय योग को आप स्वयं भी या किसी विद्वान ज्योतिषी के द्वारा अपनी कुंडली को दिखवाकर देख सकते हैं। इंडियन एस्ट्रोलॉजी पर इंडिया के बेस्ट एसट्रोलॉजर्स की गाइडेंस आपकी मदद कर सकती है। परामर्श करने के लिये लिंक पर क्लिक करें