क्‍या शनि वक्री चाल चलने पर अच्‍छे या शुभ फल देता है?

Indian Astrology | 26-Nov-2022

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ज्‍योतिष के अनुसार शनि सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। यह एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहता है। वैदिक ज्‍योतिष में शनि को न्‍याय का देवता कहा जाता है। सभी नौ ग्रहों में शनि ग्रह को न्‍याय करने वाला ग्रह बताया गया है। शनि ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो व्‍यक्‍ति को उसके कर्मों का फल और सजा देता है। ऐसा कहा जाता है कि शनि ग्रह को न्‍याय के देवता की उपाधि स्‍वयं भगवान शिव ने दी थी। व्‍यक्‍ति के कर्मों के आधार पर शनि देव फल देते हैं और बुरे कर्म करने वाले को सजा देते हैं।

जो व्‍यक्‍ति गरीब लोगों के साथ दुर्व्‍यवहार करता है, उनके सम्‍मान को ठेस पहुंचाता है या असहाय लोगों के साथ गलत बर्ताव करता है, उसे शनि के नेगेटिव प्रभावों को भोगना ही पड़जा है। प्राचीन वैदिक ज्‍योतिषीय ग्रंथों के अनुसार वक्री ग्रह शुभ प्रभाव नहीं देता है। वैदिक ज्‍योतिष के नियमों के अनुसार यदि क्रूर ग्रह वक्री स्थि‍ति में हो तो इससे उसके नकारात्‍मक प्रभाव और बढ़ जाते हैं। कुछ ज्‍योतिषीय ग्रंथों के अनुसार वक्री ग्रह अपने आखिरी भाव का परिणाम भी देता है। सभी लोगों के लिए कुंडली में शनि को वक्री होने की जरूरत नहीं है और कुछ लोगों की कुंडली में शनि जन्‍म से ही वक्री स्थिति में होता है। वक्री ग्रह की शनि दशा या अंर्तदशा में व्‍यक्‍ति को जल्‍दबाजी में या बिना सोच-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।

वक्री होने के दौरान व्‍यक्‍ति के दिमाग में नकारात्‍मक विचार आ सकता है और उलझनों से भरा महसूस कर सकता है। शनि के वक्री होने पर व्‍यक्‍ति भयभीत रहता है और उसके अंदर आत्‍मविश्‍वास में कमी आ सकती है। उसका मन संदेह और हिचक से भर सकता है जिसका असर उसके संबंधों पर भी पड़ सकता है। ऐसे व्यक्ति के मन में हमेशा उदासीनता बनी रहती है। ये लोग अहंकारी होते हैं और खुद को दूसरों से ऊंचा मानते हैं। इनके निजी और व्‍यापारिक संबंध भी कुछ ज्‍यादा अच्‍छे नहीं होते हैं।

अब वक्री शनि की साढ़ेसाती के बारे में बात करते हैं। यह स्थिति व्‍यक्‍ति को शुभ प्रभाव देती है। ग्रह का वक्री चाल चलना एक खगोलीय घटना है। कुछ ज्‍योतिषीय ग्रंथों में चक्री ग्रह को शुभ बताया गया है जबकि कुछ ग्रंथों में वक्री ग्रह को अशुभ प्रभाव देने वाला बताया गया है। मान्‍यता है कि वक्री ग्रह हमेशा काम में देरी करता है और अड़चनें पैदा करता है। साढ़े साती का मतलब है 7.5 साल के शनि तीन राशियों को पार करेंगे। शनि ग्रह एक राशि में ढाई साल तक रूकते हैं इसलिए उन्‍हें 3 राशियों को पार करने में 7.5 साल का समय लगता है।

जब शनि जन्म के चन्द्रमा के पिछले भाव से चन्द्र राशि में तथा द्वितीय भाव से चन्द्र राशि में गोचर करता है तो साढ़े सात वर्ष का समय लगता है जिसे ज्योतिष की भाषा में शनि की साढ़े साती कहते हैं। शनि की साढ़ेसाती की शुभता और अशुभता का शनि के वक्री होने से कोई संबंध नहीं है। यदि आपकी कुंडली में शनि शुभ और कारक ग्रह है और कुंडली में मजबूत स्थिति में है तो शनि की साढ़े साती आपको कोई अशुभ फल नहीं देगी।

वहीं अगर शनि आपकी कुंडली में अशुभ स्‍थान में बैठा है और अशभ ग्रह के तौर पर कार्य कर रहा है या कमजोर है तो आपके लिए लिए शनि की साढ़ेसाती मुसीबत बन सकती है। कर्क, कन्या और मीन लग्न के लिए शनि की ढैया अधिकतर अशुभ होती है। इन लग्नों के लिए शनि की मूल त्रिकोण राशि कुम्भ त्रिक भाव (6, 8, 12) में यानि अशुभ भावों में आती है। तो इन लग्नों में शनि अशुभ ग्रह बन जाता है।

 

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शनि ग्रह का वक्री

सभी नौ ग्रहों में शनि की गति बहुत धीमी है। इसका नाम शनि संस्कृत शब्द 'शने' के बाद रखा गया है जिसका अर्थ है धीमा। शनि 36% वक्री गति में रहता है। वक्री होना एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है जिसमें कोई ग्रह पीछे की ओर गति करता हुआ प्रतीत होता है। इसका अर्थ है कि वास्तव में ग्रह पीछे की ओर नहीं चलता है बल्कि गतिमान प्रतीत होता है।

वक्री शनि का प्रभाव केवल मनुष्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे विश्व पर इसका असर पड़ता है। भूस्खलन और भूकंप की संख्या बढ़ने की संभावना रहती है। साथ ही आंधी-तूफान से तबाही की स्थिति बनने की भी संभावना होती है। इसके अलावा, कंपकंपी वाली हवाएं भी चल सकती हैं।

 

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वक्री शनि को कैसे शांत करें

अगर आपको शनि की वक्री चाल के कारण जीवन में परेशानियों और संकटों का सामना करना पड़ रहा है तो आप कुछ उपाय कर के इन प्रभावों को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।

वक्री शनि की अशुभता को हटाने के लिए व्‍यक्‍ति को हमेशा लालच, बुरे विचारों और स्‍वार्थी भावनाओं से दूर रहना चाहिए।

इन लोगों में जीवन में कुछ ज्‍यादा महत्‍वाकांक्षाएं नहीं होती हैं।

आप बुर्रे कर्मों और अनाचार से दूर रहें और सत्‍कर्म करें।

किसी गरीब का अनादर ना करें और ना ही उसे कोई तकलीफ दें।

गुप्‍त तरीके से गरीबों, बेसहारा और जरूरतमंद लोगों की मदद करें।

जो लोग मेहनत करते हैं और अपनी मेहनत के पैसों से अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं, उनका अनादर कभी नहीं करना चाहिए।

पक्षियों, पशुओं और बेजुबान जानवरों को परेशान ना करें।

दूसरों के अधिकार को नष्‍ट ना करें।

दूसरों की संपन्‍नता और धन पर नजर ना रखें।

 

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अन्‍य उपाय

जो जातक शनि के दुष्प्रभाव में हैं उन्हें मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए और हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। हनुमान जी के भक्त शनि से कभी परेशान नहीं होते हैं। यदि रामायण के सुंदरकांड का पाठ किया जाए तो यह शनि देव को तुरंत प्रसन्न करने में सहायक होता है।

भगवान शंकर की पूजा से शनि का नकारात्मक प्रभाव कम होता है। इस संबंध में गाय के दूध में काले तिल डालकर शंकर जी का अभिषेक करें। पीपल के पेड़ के नीचे यह उपाय करने से अधिक लाभ होता है।

शनि न्याय का अधिपति है जिसका अर्थ है कि यह लोगों को उनके कर्मों के अनुसार फल देता है। चूंकि हिंदू धर्म में दान को बहुत ऊंचा माना गया है, इसलिए आप शनिवार के दिन काले तिल, काली उड़द और सरसों के तेल का दान कर सकते हैं। इसके साथ ही किसी काले कौवे या कुत्ते को रोटी खिलाएं।