इस महाशिवरात्रि पर रहेंगे ये दुर्लभ योग, जानिए, पूजा का मुहूर्त, महत्व और भगवान शिव को प्रसन्न करने के उपाय

Dheeraj Gupta | 20-Feb-2020

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महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2020) भारतीयों का प्रसिद्ध त्योहार है जो भगवान शिव को समर्पित है। हालांकि शिवरात्रि का व्रत प्रत्येक माह रखा जाता है लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पड़ने वाली शिवरात्रि का विशेष महत्व है, इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव, लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती से हुआ था। महाशिवरात्रि को सृष्टि के आरंभ का दिन भी माना जाता है। मान्यता है कि महादेव के विशालकाय स्वरूप अग्निलिंग के उदय से ही सृष्टि का आरंभ हुआ था। श्रद्धालु इस दिन देवों के देव महादेव को प्रसन्न करने के लिए व्रत व पूजन करते हैं। माना जाता है कि शिव पूजन करने से आपके सभी कष्ट और रोग दूर होते हैं और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।

शिव भक्तों के लिए यह पर्व बेहद खास होता है। महाशिवरात्रि के पर्व को भारत समेत पूरे विश्व में शिव भक्त बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। इस साल यह पर्व 21 फरवरी को मनाया जाएगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस वर्ष की महाशिवरात्रि पर कई शुभ और अशुभ योग बन रहे हैं जिससे इस साल की महाशिवरात्रि का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।  

117 साल बाद बन रहा है यह दुर्लभ योग

इस वर्ष की महाशिवरात्रि बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि 117 साल बाद महाशिवरात्रि के दिन शुक्र-शनि का दुर्लभ योग बन रहा है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस वर्ष महाशिवरात्रि के दिन शनि अपनी स्वराशि मकर में और शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे। 2020 से पहले इस तरह का योग सन् 1903 में बना था। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर गुरु ग्रह भी अपनी स्वराशि धनु में रहेंगे। माना जा रहा है कि इस योग में शिव की पूजा करने से शनि, शुक्र और गुरु के दुष्प्रभाव से भी मुक्ति मिल सकती है। लेकिन इस दिन आपको कुछ चीज़ों को लेकर एहतियात भी बरतनी होगी।

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28 साल बाद बन रहा है विष योग  

मौनी अमावस्या के दिन 24 जनवरी को शनि ने अपनी स्वराशि मकर में प्रवेश किया जहां वे ढाई वर्ष तक रहेंगे। 21 फरवरी को, यानी महाशिवरात्रि पर शनि के साथ चंद्र भी रहेगा। इस तरह शनि-चंद्र की युति से महाशिवरात्रि पर विष योग बन रहा है। इससे पहले महाशिवरात्रि पर विष योग 28 साल पहले 1992 में बना था। विष योग आपके जीवन को बेहद कष्टदायी बना सकता है। इसका समय पर समाधान किया जाना ज़रूरी है। वरना इसके बेहद घातक परिणाम हो सकते हैं। 

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महाशिरात्रि पर रहेंगे बुधादित्य और कालसर्प योग भी

विष योग के अलावा इस महाशिवरात्रि पर बुधादित्य और कालसर्प योग भी रहेंगे। 21 फरवरी को बुध और सूर्य के एक साथ कुंभ राशि में होने से इस दिन बुधादित्य योग बन रहा है। इसके अलावा सभी ग्रहों के राहु और केतु के बीच में होने से इस दिन कालसर्प योग भी रहेगा। महाशिवरात्रि पर राहु मिथुन राशि में और केतु धनु राशि में रहेगा। शनि और चंद्र मकर राशि में, सूर्य और बुद्ध कुंभ राशि में, मंगल और गुरु धनु राशि में और शुक्र मीन राशि में रहेंगे। सभी ग्रहों के राहु-केतु के मध्य होने से इस दिन कालसर्प योग रहेगा।

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महाशिवरात्रि 2020: तिथि व मुहूर्त

  • निशिथ काल पूजा: मध्याह्न 12:09 बजे से 1:00 बजे तक (शनिवार, फरवरी 22, 2020)

पूजा की अवधि: 51 मिनट

  • पारण का समय: प्रात: 6:54 बजे से मध्याह्न 3:25 बजे तक (शनिवार, फरवरी 22, 2020)
  • रात्रि पहले प्रहर की पूजा: शाम 6:15 बजे से रात के 9:25 बजे तक
  • रात्रि दूसरे प्रहर की पूजा: रात के 9:25 बजे से 12:34 बजे तक (शनिवार, फरवरी 22, 2020)
  • रात्रि तीसरे प्रहर की पूजा: 12:34 बजे से 3:44 बजे तक (शनिवार, फरवरी 22, 2020)
  • रात्रि चौथे प्रहर की पूजा: 3:44 बजे से 6:54 बजे तक (शनिवार, फरवरी 22, 2020)
  • चतुर्दशी तिथि आरंभ: शाम के 5:20 बजे (शुक्रवार, फरवरी 21, 2020)
  • चतुर्थी तिथि समाप्त: शाम के 7:02 बजे (शनिवार, फरवरी 22, 2020)    

महाशिवरात्रि का पौराणिक महत्व

शिवरात्रि व्रत प्राचीन काल से प्रचलित है। पुराणों में हमें शिवरात्रि व्रत का उल्लेख मिलता है। इनमें इस व्रत के महत्व और नियमों के बारे में बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव, लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इसे भगवान शिव के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है। सबसे पहले भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने शिव लिंग की पूजा की थी। शास्त्रों के अनुसार इंद्राणी, देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, रति और माता पार्वती ने भी महाशिवरात्रि का व्रत किया था।

महाशिवरात्रि व्रत एवं पूजा का महत्व

महाशिवरात्रि का व्रत एवं पूजन करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि अगर महाशिवरात्रि के दिन विधि पूर्वक सच्चे मन से व्रत व पूजा की जाए तो भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त का सभी क्षेत्रों में कल्याण करते हैं। इस दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जाता है। भगवान शिव मृत्युदाता और मृत्युरक्षक दोनों हैं। उनकी कृपा प्राप्त कर व्यक्ति बड़े से बड़े संकट का भी सामना कर सकता हैं। इसलिए इस दिन महामृत्युंजय पूजा कराने का विशेष महत्व है। इससे आपके सभी दु:खों और पीड़ाओं का अंत होता है और आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। आपको धन, संतान, सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इससे आपको धनलिप्सा, लोभ, मोह, द्वेष आदि से मुक्ति मिलती है। बुद्धि का विकास होता है और आप सात्विक कार्यों की ओर प्रेरित होते हैं। आपको अपने समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।  

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महाशिवरात्रि के ज्योतिषीय उपाय

महाशिवरात्रि के दिन मनोवांछित फल की प्राप्ति हेतु आप ये उपाय कर सकते हैं:

  • सभी बाधाएं दूर करने के लिए: रुद्राभिषेक पूजा (Rudrabhishek Puja) करवाएं।
  • रोग निवारण के लिए: महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥) का जाप करें। महामृत्युंजय यंत्र (Mahamrityunjay Yantra) धारण या स्थापित करें।
  • सौभाग्य प्राप्ति के लिए: महाशिवरात्रि पर दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए अनाथ आश्रमों में दान और ज़रूरतमंदों की मदद करें। शिव यंत्र (Shiv Yantra) स्थापित या धारण करें।      
  • शत्रु से मुक्ति के लिए: मंदिर में शिव लिंग पर दुग्धाभिषेक करें और रुद्राष्टक का पाठ करें।
  • व्यवसाय में सफलता हेतु: महाशिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक पूजा (Rudrabhishek Puja) करवाएं।
  • रुके हुए धन की प्राप्ति हेतु: महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के वाहन नंदी यानी बैल को श्रद्धापूर्वक हरा चारा खिलाएं और महामृत्युंजय मंत्र (ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥) का 108 बार जाप करें।
  • इस बार महाशिवरात्रि पर कालसर्प योग बन रहा है। इसलिए किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी की सलाह से कालसर्प यंत्र (Kaalsarp Yantra) स्थापित या धारण करें।    

ध्यान रहे प्रत्येक उपाय को प्रयोग में लाने के कुछ नियम हैं। इसलिए इन्हें करने से पहले हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी की सलाह अवश्य लें। इसके लिए आप हमारी सेवा Talk to Astrologer का प्रयोग कर सकते हैं।            

महाशिवरात्रि की व्रत कथा

एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, "हे महादेव! ऐसा कौन सा व्रत है जिसे करने पर मृत्युलोक (यानी पृथ्वी, प्राचीन धर्मग्रंथों में कई जगह पृथ्वी का उल्लेख मृत्युलोक के रूप में है) के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर सकते हैं?" तब भगवान शिव ने शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर शिकारी की यह कथा सुनाई....

एक गांव में चित्रभानु नाम का शिकारी निवास करता था। वह शिकार करके अपना घर चलाता था। उस पर एक साहूकार का ऋण था। ऋण समय पर ना चुका पाने के कारण उस साहूकार ने उसे शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर पूरे दिन शिव संबंधी बातें सुनता रहा। शिवमठ में रहते हुए उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। शाम होने पर साहूकार ने शिकारी को बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में बात की। शिकारी ने वादा किया कि वह अगले दिन ऋण चुका देगा। यह कहकर वह बंधन से छूट गया। 

उसके बाद वह रोज़ की तरह जंगल में शिकार करने गया। बंदीगृह में पूरे दिन उसने कुछ खाया-पीया नहीं था इसलिए भूख से वह बेहद व्याकुल था। शिकार को फंसाने के लिए तालाब के किनारे एक बेल वृक्ष पर वह पड़ाव बनाने लगा। उस बेल वृक्ष के नीचे एक शिव लिंग था जो बिल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को इसका पता न चला। पड़ाव लगाते वक्त शिकारी ने जो टहनियां तोड़ीं वे शिवलिंग पर गिरीं। इस तरह शिवलिंग पर बेल पत्र भी चढ़ गए। क्योंकि शिकारी ने पूरे दिन कुछ नहीं खाया था और शिवरात्रि की कथा भी सुनी थी इसलिए अनजाने में ही सही, उसका शिवरात्रि का व्रत पूरा हो गया था।

एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। जैसे ही शिकारी ने उसे मारने के लिए धनुष ताना मृगी बोली कि वह गर्भवती है। जल्द ही प्रसव के बाद बच्चा जनने वाली है। अगर तुम मुझे अभी मारोगे तो एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है। मैं बच्चा जनने के बाद वापिस लौट आऊंगी। तब तुम मुझे मार लेना। यह सुनने के बाद शिकारी ने उसे जाने दिया।

उसके बाद एक दूसरी मृगी आई। उसके समीप आने पर शिकारी ने उसे मारने के लिए जैसे ही धनुष ताना, उसने कहा कि मैं अपने पति से मिलने के लिए बेचैन हूं। जल्द ही उससे मिलने के बाद मैं वापिस लौट आऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

लेकिन दो बार शिकार खो देने के बाद वह बेहद गुस्से में था। तभी वहां से एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ निकली। उसे देख शिकारी ने निश्चय किया कि वह इस बार शिकार करके ही रहेगा। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी ने कहा, “हे पारधी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर आ जाऊं तब तुम मुझे मार लेना।” शिकारी ने कहा, “मैं दो बार पहले ही अपना शिकार गंवा चुका हूं। तीसरी बार भी शिकार को छोड़ दूं, ऐसा मूर्ख नहीं हूं। मेरे बच्चे भूख से तड़प रहे हैं..”

तब मृगी ने करुणा भरी आवाज़ में कहा, “जिस तरह तुम अपने बच्चों के लिए परेशान हो उसी तरह मैं भी अपने बच्चों के लिए परेशान हूं। मैं वादा करती हूं कि इन्हें इनके पिता के पास छोड़ कर तुम्हारे पास लौट आऊंगी। यह सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई और उसने उसे जाने दिया।

सुबह होने को थी और शिकारी ने कुछ नहीं खाया था। तभी सुबह एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आता है। उसे देखकर शिकारी बेहद खुश होता है और तय करता है कि इसका शिकार तो वह करके रहेगा। परंतु जैसे ही वह उसे मारने के लिए आगे बढ़ता है, वह मृग कहता है, “यहां आने वाली उन तीन मृगियों का मैं पति हूं। अगर तुमने उन्हें मार दिया है तो मुझे भी जल्दी से मार दो ताकि उनके वियोग में मुझे और दु:ख न सहन करना पड़े! परंतु अगर तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी थोड़ी देर के लिए जीवित रहने दो वरना वे अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर पाएंगी। मैं वादा करता हूं, उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो जाने के बाद लौट आऊंगा।” यह सुनने के बाद शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

थोड़ी देर बाद मृग समेत उसका पूरा परिवार शिकारी के सामने प्रकट हुए। शिकारी ने उन्हें मारने के लिए अपना धनुष और बाण ताना पर क्योंकि उसने शिवरात्रि का व्रत किया था इसलिए उसका हृदय कोमल हो गया था। उसने बाण फेंकना चाहा लेकिन ऐसा कर न सका। उसके हाथ से धनुष और बाण सहज ही नीचे गिर गएं। जंगली जानवरों की सत्यता और आपस में प्रेम देखकर उसने मृग के पूरे परिवार को छोड़ दिया और जीवन भर सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का निश्चय किया।

देव लोक से समस्त देवगण यह घटना देख रहे थे। घटना के परिणत होने पर सभी देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की और शिकारी तथा मृग के परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इस कथा के अनुसार शिवरात्रि का व्रत करने से व्यक्ति में हिंसा और द्वेष की भावना का नाश होता है और वह सात्विक कार्यों की ओर प्रेरित होता है।    

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