क्या आपकी जन्म पत्री बता सकती है कि कब होगा हार्ट अटैक

Madan Gupta "Sapatu" | 08-Jun-2015

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ज्योतिष में वे सभी रहस्य छिपे हुए हैं जो आप अपने बारे नन्ही आखों से नहीं देख सकते।

ज्योतिषी अपनी गणना में गलत हो सकता है ज्योतिषश्‘ाास्त्र नहीं। और यह गणना ज्योतिषी के अनुभव, ज्ञान, उसकी विश्लेषण योग्यता, जन्मपत्री का सही समय आदि कई बिंदंुओं पर निर्भर करता है। एक डाॅक्टर मरीज का डायग्नोसिस करके तभी रोग बता सकता है जब रोग हो चुका हो परंतु जन्मपत्री के माध्यम से उस दिन ही सब रोग पता चल जाते हैं जिस दिन वह मनुष्य इस धरती पर जन्म लेता है। पहले दिन ही बताया जा सकता है कि जातक को कब कौन सा रोग होगा? ऐनक किस आयु में लगेगी

दुर्घटना कब घटेगी] जोड़ों का दर्द कब होगा] सर्जरी कब होगी

किस भाग की होगी, फ्रैक्चर शरीर के किस भाग में और कब होगा, दिल की बीमारी होगी या नहीं, क्षय रोग होगा या कैंसर, रक्तचाप, एलर्जी, गठिया, किडनी आदि के रोग होंगे या नहीं, हांेगे तो किस वर्ष में आदि आदि। सब कुछ पहले ही तय है और बताया जा सकता है। परंतु मानव व्यवहार ऐसा है कि अपने बारे में कुछ भी नकारात्मक सुनना ही नहीं चाहता और ज्योतिषी के पास वह सब कुछ अच्छा अच्छा सुनने जाता है जो उसके मन में पहले से ही होता है। अतः रोग होने से पहले जानने में और उसकी सावधानी रखने में चूक जाता है।

चिकित्सा विज्ञान तो रोग घटित होने पर ही बता सकता है कि कैंसर की तीसरी स्टेज है या गाॅल ब्लैडर में पथरी है परंतु आपकी जन्मपत्री और अनुभवी ज्योतिषी आपको बरसों पहले आने वाले रोग से आगाह कर सकता है। जैसे किसी भी विषय की अलग अलग स्पेशलाइजेशन होती है वैसे ही ज्योतिष शास्त्र में भी भविष्यकथन की भिन्न भिन्न शाखा,ं हैं जिसमें सिद्धस्त ज्योतिषी ही ठीक भविष्यवाणी कर सकता है। ज्योतिषशास्त्र की मेडीकल शाखा पर अनेक विद्वानों ने अनुसंधान करके अनेकों पुस्तकें लिखीं हैं जिनमें वे सभी योग अपने अनुभवों के अनुसार लिखे हैं जिनसे ये रोग होते हैं। किस दशा में होंगे यह जानना और महत्वपूर्ण हो जाता है ताकि समय रहते उपचार आरंभ कर दिया जाए।

इस लेख में हम केवल हृदय रोग के विषय में बात करेंगे क्योंकि हार्ट अटैक या इससे संबंधित रोगों में गत कुछ वर्षों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। हर परिवार में कोई न कोई मिल जाता है जिसके सटेंट पड़ा है या बाईपास सर्जरी हुई है या इस रोग के लक्षण परिलक्षित हो रहे हैं। मेडीकल विज्ञान इसका कारण गलत जीवन शैली, अनावश्यक प्रतिस्पद्र्धा, समय रहते चेकअप न करवाने आदि को दोष देता है जो किसी सीमा तक तो ठीक है परंतु हमने अपने अनुसंधान में पाया कि यदि जन्मपत्री में वे योग जन्मकालिक ही हैं तो भी अच्छे खानपान, सादा जीवन, रोजाना की सैर, टंेंशन-फ्री -लाईफ के बावजूद ओपन हार्ट सर्जरी हो गई!

कुंडलियों का विश्लेषण

चंडीगढ़ के एक प्रसिद्ध हार्ट केयर अस्पताल के कार्डियो विभाग के मरीजों की कुंडलियों का विश्लेषण और उनसे बातचीत करने पर पाया कि यदि हार्ट अटैक का कम्बीनेशन आपकी कुंडली में है तो आपको अच्छे से अच्छा सर्जन या हृदय रोग विशेषज्ञ भी इस रोग से नहीं बचा सकता। इस अस्पताल में एक हार्ट स्पेशलिस्ट डाॅक्टर, एक किसान, एक फौजी, एक महिला, एक 12 साल का बच्चा जब बाई पास करवाते दिखे तो उन्होंने उन सभी तथ्यों की पुष्टि की जिनसे हार्ट प्राॅब्लम नहीं होनी चाहिए और फिर भी अच्छी सेहत, उचित रखरखाव और नियमित व्यायाम, योगासनों आदि के बावजूद हो गई। हृदयाघात पुराने जमाने में भी होते थे परंतु कारण समझ नहीं आता था और परिवारजन यही कहते नहीं थकते थे कि बहुत अच्छे कर्म कि, थे, बस एक मिनट लगा, आवाज दी और संसार से चुपचाप विदा हो गए। कोई सेवा नहीं करवाई। आज चिकित्सा विज्ञान सूक्ष्म स्तर पर इसके कारणों की परख और ईलाज करता है।

यों तो ज्योतिष शास्त्र की मेडीकल शाखा बहुत विशाल तथा चिकित्सा विज्ञान की तरह ही कम्पलीकेटिड है फिर भी हम एक आम पाठक की सुविधा के लिए कुछ योग बता रहे हैं जो वे स्वयं अपनी कुंडली में देख सकते हैं या सुयोग्य ज्योतिषी को दिखा सकते हैं जिसका इस शाखा में पूर्ण अनुभव हो। एम्स सहित कई अन्य चिकित्सा प्रतिष्ठानों के ऐसे चिकित्सक भी मिले जो रोग ढूंढने में इस शास्त्र का भी सहारा लेते हैं। कुछ बड़े डाॅक्टरों ने ज्योतिष शास्त्र की बाकायदा विधिवत् शिक्षा भी ली है।

कुंडली में प्रथम भाव शरीर, चैथा व पांचवां छाती व हृदय का, छठा भाव रोग, ऋण व रिपु का माना गया है। बारहवां भाव अस्पताल और व्यय का होता है। आठवां मृत्यु स्थान कहलाता है। यदि इन तीनों भावों की दशा,ं एक साथ आ जाएं या गोचर में परस्पर संबंध बन जाए तो समझें कि आपात काल लागू होने वाला है या मृत्युतुल्य स्थिति बनने वाली है या कोर्ट, कचहरी, थाने व अस्पतालों की परिक्रमा के दिन आ गए हैं।

यदि लग्न में शुभ ग्रह हैं और लग्नेश बलवान है तो इस रोग की संभावना कम रहती है और पहले भाव में ही क्रूर ग्रह या मारकेश की दृष्टि या युति हो तो हृदय रोग की संभावना प्रबल रहती है। पहले खाने में ही सूर्य, मंगल, राहु, शनि ग्रहों की युति हो या दृष्टि हो या छठे भाव का स्वामी स्वयं लग्न में हो तो भी हार्ट संबधी समस्याओं से बचना कठिन रहता है।

  • दिल के रोग का कारक ग्रह सूर्य है तो मंगल रक्त संचार को नियंत्रित करता है। शनि रोगों का द्योतक है।
  • षष्ठेश यदि किसी अन्य भाव से परिवर्तन योग बनाता है तो उस अंग की हानि करता है।
  • यदि सिंह, कन्या और वृश्चिक लग्न हो तो भी हृदय संबंधी रोग की आशंका रहती है।
  • स्ूार्य नीच राशि का या मंगल के साथ हो और प्रथम, चतुर्थ या 10 वें भाव में विद्यमान हों। सूर्य- गुरु व शनि, मंगल,
  • सूर्य शुक्र 4 में, या राहु-केतु की दृष्टि हो तो भी इस घात से जीवन डांवाडोल हो जाता है।
  • दसवें भाव में सूर्य व मंगल हों, राहु या केतु का दृष्टि संबंध हो तो पुत्र श्री या नौकरी किसी न किसी कारण दिल के रोग का कारण बन जाते हैं।
  • यही योग दूसरे भाव में हों तो अधिक धन या धनहीन होने से होता है। सप्तम भाव में ऐसे योग हों तो पत्नी या प्रेयसी कारण बनती है। पंचम भाव में देवदास की पारो इसका कारण बन जाती है।
  • शनि- बुध की युति या इनकी दशा, दिल की नसें कमजोर करते हैं।
  • मेष लग्न में शनि, कर्क का षष्ठेश बुध और सूर्य पाप मध्य हो तो भी हृदय रोग होता है।
  • ऐसे बहुत से योग हर लग्न के लिए अलग अलग हैं परंतु मुख्यतः दिल की बीमारी सूर्य-शनि और दिल का दौरा शनि-मंगल देते हैं।

2015 में जब शनि - मंगल की बृश्चिक राशि में आ गए तो हमने देखा कि अस्पतालों में हृदय रोगियों की संख्या पहले से दोगुनी हो गई और मरीज वे थे जिनकी कुंडलियों में उपरोक्त योग उस समय प्रभावी थे।

हृदय रोग की कुंडली का विवेचन

यहां हम इन ज्योतिषीय योगों और कुंडली में विद्यमान ग्रहों की सहायता से प्रयास करेंगे कि 1950 में जन्मे एक जातक की कुंडली के फलादेश में 2014 वर्ष के दिसंबर महीने में हार्ट अटैक व सर्जरी लिखी थी और वर्षफल में भी इसी अवधि में गंभीर रोग और मृत्यु तुल्य कष्ट लिखा था। जातक का जन्म 10 मई 1950, समय 13ः15, स्थान शिमला है। सिंह लग्न में शनि-मंगल की युति और रोग स्थान का स्वामी शनि देह स्थान पर शत्रु क्षेत्र में, अपने शत्रु मंगल और वह भी सिंह की शत्रु राशि में विद्यमान है।

जिस दिन जातक का जन्म हुआ, उसी दिन यह निश्चित था कि मारकेश प्रभावी होने पर शरीर को नुकसान हो सकता है और हृदय रोग ही होगा। केतु यहां मारकेश है और चंद्रमा 12 वें स्थान यानी व्यय और अस्पताल का मालिक। 2014 के अंत में केतु- चंद्र की दशा लगी, शनि ,मंगल की 8वीं राशि में नवंबर 2014 में आए तो 19 दिसंबर, 2014 को बाई पास सर्जरी करनी पड़ गई। चूंकि चंद्र-केतु की दशा जुलाई 2015 तक है, इसलिए तीन बार इसी रोग संबंधी, अस्पताल में भर्ती होना पड़ गया। एक बार लगभग मृत्यु ही हो चुकी थी और डाॅक्टरों ने 6 घंटों में पुर्नजीवित कर दिया।

षोडस वर्ग की त्रिशांश कुंडली जहां से रोग आदि का विचार किया जाता है, पर भी यदि नजर डालें तो भी छठे भाव का स्वामी मंगल लग्न में है और त्रिशांश का स्वामी बुध अष्टम स्थान यानी मृत्यु भाव में चला गया है। यदि इसी कंुडली के गोचर ग्रहों या दशा में 8 वें भाव, अर्थात मृत्यु स्थान के स्वामी गुरु की दशा या अंतर्दशा या दृष्टि संबंध बन जाता तो जीवनलीला समाप्त होने में कोई शंका नहीं थी।

जातक के दादा जी स्वयं ज्योतिषी थे अतः यह सब समय, लिखित रुप में था और परिवार को इस आपातकाल की ज्योतिष के सशक्त माध्यम से पूर्व जानकारी भी थी और उनकी पुत्री स्वयं एक कार्डियोलोजिस्ट है, अतः समय रहते सभी मेडीकल सुविधा,ं प्रदान कर दी गई। यहां ज्योतिष पर विश्वास कैसे न किया जाए जब कुंडली के फलादेश व वर्षफल में सर्जरी की तारीख तक दी गई है। जातक की कुंडली में केतु व बुध मारकेश है जिसकी दशा 2020 तक है और उसके बाद शुक्र का समय आरंभ होगा जो स्वयं मृत्यु स्थान अर्थात 8 वें भाव में राहु के साथ विद्यमान है। इस योग की भविष्यवाणी का अनुमान हम पाठकों और ज्योतिष ज्ञाताओं और आने वाले समय पर छोड़ देते हैं।

हमारा इस लेख का मूल उद्ेश्य ज्योतिष के प्रति विश्वास, आस्था, सही आकलन, विश्लेषण, पूर्व सूचना और समय रहते सचेत रहना है।