Makar Sankrantri 2020: जानिए, मकर संक्रांति के विविध रूपों और महत्व के बारे में…

Indian Astrology | 15-Jan-2020

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भारत की एक महत्वपूर्ण विशेषता उसकी विविधता है। यहां पूरे वर्ष कई त्योहार मनाए जाते हैं। इनमें से अधिकतर त्योहारों का अपना पौराणिक महत्व है। अलग-अलग राज्यों में इन्हें अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। इन्हीं में से एक त्योहार है मकर संक्रांति (Makar Sankranti) जो प्रत्येक वर्ष जनवरी महीने में मनाया जाता है। इस दिन गंगा में स्नान कर दान और व्रत करने का रिवाज़ है। इसके अलावा हर राज्य में मकर संक्रांति पर मेले लगते हैं और पतंगबाजी महोत्सव आयोजित किए जाते हैं।

क्या है मकर संक्रांति?

संक्रांति का अर्थ संक्रमण से है, यानि एक राशि से दूसरी में प्रवेश करना। सूर्य जब-जब अपनी राशि बदलता है तब-तब संक्रांति मनाई जाती है। अब क्योंकि सूर्य हर महीने अपनी राशि बदलता है इसलिए पूरे साल में 12 संक्रांति पर्व मनाए जाते हैं। लेकिन इनमें मकर संक्राति का विशेष महत्व है। यहां ‘मकर’ शब्द मकर राशि को इंगित करता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। शास्त्रों में इसे अंधकार से प्रकाश की ओर संक्रमण के रूप में देखा गया है, इसलिए इस दिन को बेहद शुभ माना गया है।

कब है मकर संक्रांति?

आमतौर पर मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता है लेकिन इस बार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इसका शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:

  • मकर संक्रांति पुण्य काल- सुबह 7 बजकर 15 मिनट से शाम के 5 बजकर 46 मिनट तक कुल अवधि- 10 घंटे 31 मिनट
  • मकर संक्रांति महा पुण्य काल- सुबह 7 बजकर 15 मिनट से 9 बजे तक कुल अवधि- 1 घंटा 45 मिनट

मकर संक्रांति का महत्व

शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार धार्मिक एवं सांस्कृतिक तौर पर मकर संक्रांति का बहुत महत्व है। इसे ‘उदय पर्व’ की भी संज्ञा दी गई है। इसलिए भारत के कई क्षेत्रों में इसे ‘उत्तरायणी’ भी कहा जाता है। खगोलशास्त्रियों के अनुसार सूर्य 6 महीने दक्षिणायन में और 6 महीने उत्तरायण में रहता है। शास्त्रों में दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि और उत्तरायण को देवताओं का दिन माना गया है। मकर संक्रांति में प्रवेश करने के दौरान सूर्य उत्तरायण में होता है जिसे अंधकार से प्रकाश की ओर संक्रमण के रूप में देखा गया है। इसका उल्लेख श्रीकृष्ण स्वयं गीता में करते हुए कहते हैं कि जिस व्यक्ति की मृत्यु उत्तरायण में होती है वह जन्म-मृत्यु के जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है।

सूर्य का उत्तरायण में होना मौसम में बदलाव को भी इंगित करता है। इससे रातें छोटी और दिन लंबे होने लगते हैं, यानि यह शरद ऋतु के जाने का समय होता है। कहीं-कहीं इसे फसल कटाई के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना के रूप में ही देखा गया है। इस दिन ज्योतिषियों ने गंगा में स्नान कर दान और व्रत करने और सूर्यदेव को अर्घ्य देने की सलाह दी है।

मकर संक्रांति के विविध रूप

मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। हर राज्य इस त्योहार को अपने तरीके से मनाता है। अलग-अलग राज्यों में इसके अलग-अलग नाम हैं। मनाने का तरीका अलग है लेकिन उत्साह सबमें एक सा है...

उत्तरायण के प्रकाश में
सारा भारत है जोश में
कोई मना रहा मकर संक्रांति,
तो कोई पौष संक्रांति,
किसी के लिए यह पोंगल
तो किसी के लिए बिहु
कहीं बन रही खिचड़ी
तो कहीं बन रहे लड्डू
इसके उतने ही रंग,
जितनी कि,
आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे...


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यहां जानिए इस पर्व के विविध रूपों के बारे में...

  • हरियाणा और पंजाब: हरियाणा और पंजाब में मकर संक्रांति के पर्व को एक या दो दिन पहले लोहड़ी के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन अंधेरा होता तो आग जलाकर उजाला किया जाता है और उसमें तिल, मूंगफली, गज्जक, रेवड़ी और भुने हुए मक्के डाले जाते हैं। आग में डाली जाने वाली इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इसके अलावा इस दिन सरसो के साग और मक्के की रोटी का भी आनंद उठाया जाता है। किशोरियां लोकगीत गाती हैं और लोग ढोल नगाड़े बजाकर नाचते हैं। नई बहू के आगमन और शिशु के जन्म के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व है।
  • उत्तर प्रदेश और बिहार: इन राज्यों में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाने, खिलाने और दान करने का अत्यधिक महत्व है। त्रिवेणी संगम तीर्थराज प्रयाग में इस दिन माघ मेला लगता है। माघ स्नान के लिए मकर संक्रांति को बेहद शुभ दिन माना जाता है। इसलिए देश के विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु प्रयाग में पवित्र माघ स्नान करने के लिए आते हैं।
  • महाराष्ट्र: महाराष्ट्र में मकर संक्रांति का पर्व दो दिन मनाया जाता है। मकर संक्रांति के पहले दिन को भोगी कहा जाता है। इस दिन सूर्यदेव की पूजा की जाती है और पतंगबाजी महोत्सव आयोजित किए जाते हैं। दूसरे दिन को संक्रांति कहा जाता है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपनी पारंपरिक पोशाक पहनकर एक दूसरे से मिलती हैं। विवाहित स्त्रियों के इस मिलन को हल्दी-कुमकुम के नाम से जाना जाता है। सभी स्त्रियां एक दूसरे के माथे पर हल्दी और रोली लगाती हैं और एक दूसरे को बर्तन, कपड़े, आदि घरेलू सामान भेंट करती हैं। इसके अलावा लोग एक दूसरे को तिल-गुड़ देते हैं और देते हुए कहते हैं ‘तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो।’ ऐसा माना जाता है कि इस दिन तिल-गुड़ भेंट करने से रिश्तों में आई कड़वाहट दूर हो जाती है और उनमें मिठास आती है।
  • तमिलनाडु: दक्षिण भारत के अधिकतर राज्यों में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 4 दिन का पर्व होता है। पहले दिन को पोंगल भोगी, दूसरे दिन को सूर्य पोंगल, तीसरे दिन को मट्टू पोंगल और चौथे दिन को कन्नुम पोंगल कहा जाता है। पहले दिन इसे फसल कटाई के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बारिश और अच्छी फसल के लिए इंद्र देव की पूजा की जाती है। इसके अलावा इस दिन घर की सभी पुरानी और खराब वस्तुओं को आग में जलाने का रिवाज़ है। पुरानी वस्तुओं को जलाना नई शुरुआत के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन से नववर्ष शुरु होता है। दूसरे दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। घड़े में चावल उबालकर सूर्य भगवान को भोग लगाया जाता है और लोकगीत गाए जाते हैं। तीसरे दिन किसान अपने पशुओं की पूजा करते हैं। इस दिन गाय और बैल की विशेष रूप से पूजा की जाती है। चौथे और आखिरी दिन भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है।
  • असम: असम में मकर संक्रांति को माघ बिहु (Magh Bihu) के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे भोगली बिहु (भोग यानि आनंद का बिहु) भी कहा जाता है। असम में इसे फसल कटाई के त्योहार के रूप में मनाया जाता है जो कि कुछ दिन से कुछ हफ्तों तक चल सकता है। इस दिन बड़ी दावत का इंतजाम किया जाता है। दावत के लिए खाने की चीज़ें असम के पारंपरिक झोपड़े मेजी (meiji) में बनाई जाती हैं। अगले दिन सुबह इन झोपड़ों को जला दिया जाता है। इसके अलावा इस दिन बफेलो फाइटिंग (Buffalo fighting) जैसे खेल खेलने और मटके तोड़ने की भी परंपरा है।
  • गुजरात: गुजरात में मकर संक्रांति को ‘उदय पर्व’ यानि ‘उत्तरायण’ के रूप में मनाया जाता है। यहां के लोगों के लिए मकर संक्रांति का मतलब पतंगबाज़ी है। आसमान में आपको ढेरों रंग बिरंगी पतंगे उड़ती हुई दिख जाएंगी। छतों से लपेट और काईपो चे की आवाज़ गूंजती हुई सुनाई देंगी। गुजरात में पतंगबाज़ी का इतना क्रेज़ है कि यहां जगह-जगह पतंगोत्सव आयोजित किए जाते हैं। गुजरात सरकार हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर साबरमती नदी के किनारे बसे अहमदाबाद में अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन करती है।

मकर संक्रांति के दिन ज़रूर करें ये काम

हालांकि मकर संक्रांति नई शुरुआत और हर्षोल्लास का त्योहार है लेकिन इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। इसलिए इस दिन कुछ विशेष कर्म करना बेहद ज़रूरी है:

  • देवी पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता वह हमेशा रोग से ग्रस्त रहता है। इसलिए चाहे आप स्त्री हों या पुरुष इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठ जाएं और स्नान करके साफ और स्वच्छ कपड़े पहनें। इस दिन नहाने के पानी में तिल मिलाकर अथवा गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा आदि पवित्र नदियों का जल मिलाकर स्नान करना चाहिए।
  • इस दिन त्रिवेणी संगम (गंगा, यमुना सरस्वती का संगम स्थल) तीर्थराज प्रयाग में स्नान करने और सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व है। पुराणों एवं शास्त्रों में माघ स्नान (Magh Snan) के लिए मकर संक्रांति का दिन बेहद शुभ माना गया है।
  • मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन गरीबों में ठंड दूर करने वाली वस्तुएं जैसे कि स्वेटर, रजाई, कंबल आदि दान किए जा सकते हैं।
  • इस दिन हर चीज़ में तिल का प्रयोग किया जाता है। आप इस दिन देवी-देवताओं और अपने पितरों को तिल का तेल अर्पित कर सकते हैं। अपने शरीर पर तिल का तेल लगा सकते हैं। तिल और गुड़ के बने लड्डू प्रसाद में बांट सकते हैं।
  • प्राचीन धर्मग्रंथों में मकर संक्रांति के दिन भगवान गणेश, शिव, विष्णु, मां लक्ष्मी और सूर्य देव की पूजा करने को कहा गया है। पूजा विधि (puja vidhi) जानने के लिए हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी से बात करें।