जानिए, वैवाहिक जीवन पर क्या प्रभाव डालता है मांगलिक दोष ?
Indian Astrology | 19-Nov-2019
Views: 8505कई बार मंगल ग्रह ( mangal grah)का नाम मात्र सुन कर लोग बनता हुआ रिश्ता ठुकरा देते हैं, जबकि ऐसा जरूरी नहीं है कि मंगल दोष हमेश हानि ही पहुंचाये। ज्योतिष विज्ञान (Astrology) के अनुसार मंगल दोष (mangal dosh) का प्रभाव कम ज्यादा भी हो सकता है और कई बार मंगल का योग दाम्पत्य जीवन को सर्वसुखमय बना देता है।
आइये जानते हैं मंगल की दशा और जीवन पर प्रभाव (Effects of mangal dosh on life)-
मांगलिक दोष लग्न, चन्द्रमा या शुक्र से प्रथम, चतुर्थ, अष्टम और द्वादश स्थानों पर में पाप ग्रह होने पर होता है। किन्तु इस योग का प्रभाव एक सा नहीं रहता, अपितु इस योग में कमी एवं वृद्धि भी होती है। यह योग लग्न से बनता है तो इसका दुष्प्रभाव अपेक्षाकृत कम या कमजोर होता है।
मंगल का कम प्रभाव-
लग्न में पाप ग्रह होने पर इस मांगलिक योग के दुष्प्रभाव की मात्रा कुछ कम हो जाती है। इससे कम दुष्प्रभाव चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह होने पर, उससे भी कम दुष्प्रभाव अष्टम स्थान में होने पर तथा सबसे कम दुष्प्रभाव बारहवें स्थान में होने पर होता है। अतः कहा जा सकता है कि सप्तम, लग्न, चतुर्थ, अष्टम एवं व्यय स्थानों में पाप ग्रह होने पर बनने वाले मांगलिक योगों का दुष्पभाव उत्त्रोत्तर काम हो जाता है।
Jyotish Shastra का एक सर्वमान्य नियम यह है कि स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि तथा उच्चराशि में स्थित ग्रह उस भाव का नाश नहीं करता, बल्कि वह उस भाव के फल की वृद्धि करता है। किन्तु नीच राशि या शत्रु राशि में स्थित ग्रह भाव को नष्ट कर देता है। अतः मांगलिक योग ग्रह, स्वराशि, मूल त्रिकोण रशि तथा उच्च राशि में होने पर दोषदायक नहीं होता है। किन्तु इस योग को बनाने वाला ग्रह नीच राशि या शत्रु राशि में हो तो अधिक दोष दायक होता है।
चंद्र से मंगली
दुष्प्रभाव अधिक होता है-
चन्द्रमा से मंगली योग होने से इसका दुष्प्रभाव अधिक होता है। कारण यह है कि लग्न का सम्बन्ध शरीर से होता है और चंद्रमा का कनेक्शन सीधा मन से होता है। यानी ऐसा होने पर आपके जवीन में उलझनें हावी रहती हैं।
शुक्र से मंगली
शुक्र का सम्बन्ध शरीर से-
शुक्र से मंगली योग होने पर इस का दुष्प्रभाव सर्वाधिक होता है। कारण यह है कि शुक्र का सम्बन्ध शरीर से होता है। यानि शादी के बाद आपको कोई ऐसा रोग लग जाता है, जिससे जीवन भर दवाओं पर खर्च होता रहता है।
शनि से मंगली
कुछ कम प्रभाव डालता है-
यह योग मंगल, शनि, सूर्य, राहु, एवं केतु इन पाँच ग्रहों से बनता पाप ग्रहों में मंगल शनि सूर्य राहु एवं केतु उत्तरोत्तर कम पापी माने गये हैं। अतः मंगल से बनने वाले योग की तुलना में शनि से बनने वाला योग कुछ कम प्रभाव डालता है।
सूर्य से मंगली
दुष्प्रभाव सबसे कम होता है-
सूर्य, राहु एवं केतु इन ग्रहों से होने वाला दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर कम होता है। इस प्रकार मंगल से बनने वाले योग दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर सर्वाधिक तथा केतु से बनने वाले योग का दुष्प्रभाव सबसे कम होता है।
सबसे हानिकारक मंगल योग
अधिकतम हानिकारक होता है-
मांगलिक योग लग्न चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, एवं द्वादश स्थानों में पाप ग्रहों के बैठने से बनता है। सप्तम स्थान साक्षात दाम्पत्य सुख का प्रतिनिधत्व करता है। अतः इस स्थान में पाप ग्रह होने पर यह योग अधिकतम हानिकारक होता है।
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