ज्योतिषीय उपाय कारगर होते हैं या नहीं
Indian Astrology | 27-Jun-2019
Views: 7248यह प्राचीन काल से ही यह चर्चा का विषय रहा है कि उपाय कारगर होते हैं या नहीं। वे लोग जो उपाय के महत्व की वकालत करते हैं, निश्चित रूप से धार्मिक आस्था की अवधारणा के महत्व को समझते हैं। धार्मिक आस्था या फेथ हीलिंग का हर धर्म में खास ज़िक्र किया गया है। ईसाई धर्म में भी फेथ हीलिंग का विशेष उल्लेख किया गया है। हिन्दु ज्योतिष अतुलनीय है क्योंकि इसमें उपायों का एक सुविस्तृत शोध-प्रबंध ग्रहों के दोषों को कम करता है। उपायों की उपलब्धता विभिन्न व्यक्तियों की जरुरतों और उनके देश, समुदाय व भूमण्डल के अनुसार होती है। व्यक्ति विशेष की जरूरतों व रुचि की सुविधा के लिए पूर्ण विकसित उपाय उपलब्ध हैं। जिस प्रकार चिकित्सा विज्ञान में पहले रोग का कारण और निवारण सही दवाओं व इलाज के साथ किया जाता है उसी प्रकार ज्योतिष में यह कार्य सही उपायों द्वारा किया जाता है। ज्योतिष या गुप्त विद्याओं द्वारा बताए गए उपाय विश्वास की शक्ति पर आधारित हैं।
उपाय किस प्रकार काम करते हैं?
ज्योतिष का ध्येय भविष्य के बारे में सही फलकथन देना होता है परंतु इसका उचित उपयोग उपायों द्वारा समस्याओं का निराकरण करने में है। ज्योतिष अत्यधिक लाभदायक है क्योंकि इस ज्ञान की सहायता से हमें अपने भविष्य की अच्छी व बुरी घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है। किसी ने सही कहा है. समस्या के आने की पूर्व सूचना होने से हम पूरी तरह से उसका सामना करने को सजग व सतर्क हो जाते हैं. यदि हम किसी संभावित प्रतिकूल घटना के बारे में समय से पहले जान लें तो हम अपने को उस घटना का सामना करने या उसे टालने के लिए तैयार कर सकते हैं व अपनी सुरक्षा जरूरी उपायों के द्वारा कर सकते हैं। ज्योतिष ज्ञान हमें विभिन्न उपायों की जानकारी से अवगत कराता है। ये उपाय ग्रहों को अनुकूल करते हुए सफल जीवन व्यतीत करने में हमारी सहायता करते हैं। भारतीय ज्योतिष विशेष रूप से नौ व बारह राशियां पर आधारित है। यह सिद्ध हुआ है कि ये सारे ग्रह विभिन्न राशियों में गोचर करते हुए विश्व की सारी गतिविधियों पर सूक्ष्म और वृहद स्तर पर प्रभाव डालते हैं। कुछ ग्रह शुभ कहलाते हैं और कुछ अशुभ। अशुभ ग्रह विभिन्न क्रमचय और युति में मनुष्य के लिए उपायों द्वारा भिन्न प्रकार की समस्याएं अपनी दशा व गोचर के आधार पर उत्पन्न करते हैं। वह ग्रह जो अशुभ है उन्हें अनुकूल बनाने के लिए शांत किया जाता है।
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उपायों व साधनाओं की अचूकता बेजोड़ है
भारतीय ज्योतिष ने हमें उपाय बताए हैं जिनसे ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है तथा दुखों व तकलीफों का निवारण होता है। मनुष्य अपने जीवन में विभिन्न प्रकार के रोगों, अवसाद, दुख व संयोगों से ग्रसित रहता है। वह इन मुसीबतों से छुटकारा पाने के लिए ज्योतिषियों व दैवज्ञों द्वारा बताए गए उपायों को अपनाता है। इसकी चिंता अधिकतर निम्नलिखित क्षेत्रों से संबंधित होती है : धन, स्वास्थ, विद्या, जीविका, कल्याण, तंदुरूस्ती, शादी, प्रेम, बच्चे व रोग आदि।
शास्त्रों में कहा गया है कि : ‘‘गायत्री वेद जननी गायत्री पापनाशिनी अर्थात् गायत्री वेदों की जननी तथा पापों का शमन करने वाली है इसलिए इसके जप से या गायत्री यज्ञ के अवलम्बन से हर प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है, सभी पापों से छुटकारा पाया जा सकता है व पितृ दोष को शांत किया जा सकता है। भगवान बुद्ध ने गायत्री मंत्र के बारे में कहा है कि यह मंत्र छोटा है लेकिन इसमें अपार शक्तियां भरी हुई हैं। इसके निरंतर जप से ईश्वर साक्षात्कार भी संभव किया जा सकता है।
प्रत्येक पूजा कार्य के आरंभ में श्री गणपति जी का ध्यान व पूजन किया जाता है। गणपति अपने भक्तजनों की बाघाओं को दूर करके उन्हें ऋद्धि, सिद्धि व बुद्धि प्रदान करते हैं। हिंदू देव परमेश्वर, शिव को आशुतोष नाम से संबोधित कर एक विशेष स्थान दिया गया है। प्रसिद्ध हिंदी धार्मिक महाकाव्य रामचरित्मानस में भगवान शिव के बारे में कहा गया है कि केवल वही हमारा भाग्य बदल सकते हैं : ‘‘भावी मेटि सकहिं त्रिपुरारी’’।
न गुरोः सदृशो दाता, न देवो शंकरोपमः।
न कौलात् परमोयोगी, न विद्या त्रिपुरापरा।।
उपरोक्त श्लोक देवों में शिव के श्रेष्ठतम होने का प्रमाण है। शिव को प्रसन्न करने के कई उपाय हैं जैसे महारुद्राभिषेक, पूजा व अर्चना। शिव की विशेष कृपा व आशीर्वाद रुद्राक्ष धारण करने वालों पर होती है। नेपाल के राजा अपने सच्चे एक मुखी रुद्राक्ष की वजह से राजतंत्र में रहे, जबकि जन्मपत्री में अशुभ योग थे। यदि कोई व्यक्ति मृत्यु तुल्य कष्ट, मृत्यु के भय, दुर्घटना या रोग के भय से ग्रसित हैं तो ऐसी स्थिति में महामृत्युंजय यज्ञ बताया जाता है। ऋषि मार्कंडेय ने मृत्यु के महातांडव का निवारण महामृत्युंजय मंत्र के जाप से किया।
इसी तरह कहा गया है कि ‘‘कलौ चण्डी विनायकौ’ जिसका अर्थ है कि कलियुग में श्री गणपति व चण्डी देवि हमें तुरंत व असरदार फल प्रदान करते हैं। इसी कारण से जो लोग किसी अशुभ ग्रह के प्रभाव में हैं वो दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं। चण्डी हमें दरिद्रता, दुख, अवसाद, रोग व भय से मुक्ति दिलाती हैं। विशेष रूप से नवरात्रों के समय हर हिंदू परिवार चण्डी देवी की पूजा-अर्चना करता है। सभी पुरुषार्थों की प्राप्ति हेतु आदि गुरु शंकराचार्य ने लोकोपकारार्थ भारतवर्ष में चार मठों में श्री यंत्र की अधिष्ठात्री देवी श्री ललितामहात्रिपुरसुंदरी की क्रमिक व विधिवत् उपासना हेतु गुरु शिष्य परंमपरा स्थापित की। भगवती त्रिपुरसुदंरी की पूजा-अर्चना से भोग व मोक्ष एक साथ सुलभ हो जाते हैं।
यत्रास्ति भोगो न हि तत्र मोक्षो यत्रास्ति मोक्षो न हि तत्र भोगो।
श्री सुंदरी सेवन् तत्पराणाम् भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव।।
प्राचीन भारतीय साहित्य व ग्रंथ में दिए गए उदाहरण व संदर्भ ये दर्शाते हैं कि विभिन्न उपाय जैसे होम, जाप, मंत्रोच्चार, स्तोत्र का उच्चारण और खास व्रत रखना आदि सही, इच्छित फल के लिए प्रभावपूर्ण हैं। भारतीय राजा दशरथ को संतान सुख ऋषियों के ऋषि वशिष्ठ के निर्देशन में आवश्यक पुत्रेष्ठि यज्ञ करके प्राप्त हुआ था। इन उपायों व साधनाओं की अचूकता बेजोड़ है और कई धर्म ग्रंथों में विवरण दिया है।