क्यों जरूरी है, विवाह से पहले कुंडली मिलान

Indian Astrology | 12-Mar-2020

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अठारह संस्कारों में विवाह सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है| इस संस्कार मे बंधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलान करने की परिपाटी है| प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों ने अपनी दूरदर्शिता और ज्ञान का उपयोग कर समाजिक हित के लिए सारे नियम बनाएं| इसमें से एक नियम है कुंडली मिलान, आध्यात्मिक ग्रंथों के अनुसार कुंडली मिलान सुखद वैवाहिक जीवन का एक मार्ग बताया गया है। विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करना अत्यंत आवश्यक हैं, क्योंकि कुंडली मिलान भावी दूल्हा-दुल्हन की अनुकूलता और उनके सुखी व समृद्ध भविष्य को जानने का एक सटीक साधन है। शादी की चाह रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए एक अच्छा जीवनसाथी चाहता है। परंतु कई बार ऐसा देखने में आता है कि शादी के बाद पति-पत्नी के बीच रिश्ते बिगड़ जाते हैं। दोनों के विचार अलग-अलग होने के कारण मतभेद की स्थिति बनती है| और बाद में ये सब कारण उनके बिछड़ने का कारण बन जाते हैं। शादी के बाद वर-वधु का जीवन सुखी रहे इसलिए कुंडली के माध्यम से दोनों के गुण दोषों का मिलान किया जाता है।

कुंडली में केवल गुण मिलान करके विवाह करना उचित नहीं है| व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इसलिए सभी ग्रहों का आंकलन करना अत्यंत आवश्यक है|

गुण मिलान-

विवाह से पूर्व कुंडली मिलान या गुण मिलान को अष्टकूट मिलान कहते हैं। इसमें वर एवं कन्या के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के दो भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक। इन दोनों के आधार पर वर एवं कन्या की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। कुंडली मिलान करने में सबसे पहला कार्य गुण मिलान का होता है। किसी भी कुंडली में आठ तरह के गुणों अर्थात अष्टकूट का मिलान किया जाता है। शादी में गुणों का मिलान बेहद जरुरी होता है। ये गुण है – वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री गण, भकूट और नाड़ी। इन सब के मिलान के पश्चात कुल 36 अंक होते है, विवाह के समय यदि लड़का-लड़की दोनों की कुंडली में 36 में से 18 या इससे ऊपर गुण मिल जाते हैं, तो यह माना जाता है कि विवाह सफल रहेगा, यदि 18 से कम गुण मिलते हैं तो विद्वान ज्योतिषियों द्वारा विवाह न करने का ही निर्देश दिया जाता है|

‘’वर्णो वश्यं तथा तारा योनिश्च ग्रह मैत्रकम्।
गणमैत्रं भकूटं च नाड़ी चैते गुणाधिका।।‘’

वर्ण के अंक 01

वर्ण को चार प्रकार के हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, इनसे वर-वधु के अहंकार का मिलान किया जाता है। यदि दोनों के वर्ण में समानता हो तो वर-बधु की कार्यक्षमता अच्छी होती है, जिससे विवाह के बाद दोनों का विकास होता है।

वश्य के अंक 02

वर-वधु की कुण्डली में वश्य के आधार पर यह देखा जाता है कि शादी बाद कौन किस पर हावी रहेगा।दोनों में से किसकी नियंत्रण क्षमता अधिक है| इसे पाँच प्रकार से देखा जाता है- चतुष्पाद (चार पैरों से चलने वाला), मानव, वनचर, जलचर और कीट।

तारा के अंक-03

लड़के-लड़की की कुण्डली में तारा के अंक अच्छे होने से विवाह के पश्चात दोनों के भाग्य में वृद्धि होगी। यदि तारा के अंक शून्य होगें तो शादी के बाद दोनों का भाग्य साथ न देगा जिस वजह से प्रगति में बाधायें आयेंगी।

योनि के अंक 04

वर-वधु की कुण्डली में योनि के अंक बेहतर मिलने पर दोनों के बीच निकटता, शारीरिक संबंधों में अनुकूलता आदि के बारे में देखा जाता है। यदि योनि के अंक शून्य हैं तो विवाह के बाद दोनों का मानसिक स्तर न मिलने पर आये दिन तनाव होता रहता है।

ग्रहमैत्री के अंक 05

लड़के-लड़की की कुण्डली में ग्रहमैत्री के अंक अच्छे मिलने से दोनों में सामंजस्य बेहतर रहता है एंव पारिवारिक उन्नति होती है। ग्रहमैत्री के अंक शून्य होने पर पारिवारिक प्रगति बाधित होती है एंव विरोधाभास बना रहता है।

गण के अंक 06

इसमें वर और वधु के स्वभाव और व्यवहार को मिलाया जाता है। गण तीन तरह के होते हैं- देव, मानव, राक्षस। पुरूष-स्त्री की कुण्डली में जब गण के अंक बेहतर होते है तो दोनों का स्वभाव आपस में मेल खाता है, और गण के अंक शून्य होने पर दोनों का स्वभाव आपस में नहीं मिलता|

भकूट के अंक 07

भकूट में वर-वधु की भावनाओं का मेल देखा जाता है। यह परिवार, आर्थिक समृद्धि और दम्पत्ति के बीच की ख़ुशी को निर्धारित करता है। इसमें वर की कुंडली में स्थित ग्रहों को कन्या की कुंडली के ग्रहों के साथ मिलाया जाता है। दोनों की कुण्डली में भकूट के अंक अच्छे मिलने पर आपस में अच्छा प्रेम बना रहता है और भकूट के अंक शून्य होने पर वर-वधू के बिच प्रेम का आभाव रहता है,

नाड़ी के अंक 08

विवाह में नाड़ी दोष का विचार बहुत ही महत्वपूर्ण है, यदि वर और वधु की कुंडली में दोनों की एक ही नाड़ी हो तो यह नाड़ी दोष माना जाता है, नाड़ी दोष के कारण व्यभिचार का दोष पैदा होने की सभांवना रहती है, मध्य नाड़ी को पित स्वभाव की मानी गई है। इसलिए मध्य नाड़ी के वर का विवाह मध्य नाड़ी की कन्या से हो जाए तो उनमे परस्पर अहम् भाव के कारण सम्बंन्ध अच्छे नहीं बन पाते, उनमें विकर्षण की सभांवना बनती है, परस्पर लड़ाई -झगड़े होकर तलाक की नौबत आ जाती है। विवाह के पश्चात् संतान सुख कम मिलता है, गर्भपात की समस्या ज्यादा बनती है, नाड़ी एक होने से ब्लड ग्रुप भी एक ही होने की सम्भावना रहती है। जिस वजह से सन्तान से सम्बन्धि दिक्कतें आती है एंव दोनों का स्वास्थ्य आये दिन खराब रहता है। इसीलिए विवाह से पूर्व कुंडली मिलान अवश्य करना चाहिए|

कुंडली मिलान में अष्टकूट मिलान ही काफी नहीं है। मंगल दोष भी देखना जरुरी है, फिर लग्न मेल सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तम भाव में बैठे ग्रह, सप्तम और सप्तमेश को देख रहे ग्रह सप्तम भाव का कारक ग्रह और सप्तमेश की युति आदि भी देखी जाती है।

मांगलिक दोष-

यदि किसी कुंडली में मंगल पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बाहरवें भाव में हो तो वह मांगलिक दोष बनाता है| कुंडली मिलान में मंगल दोष का विचार बहुत ही महत्वपूर्ण है, अगर विवाह में मांगलिक दोष का विचार न किया जाये, तो वैवाहिक जीवन में बहुत सी समस्याएं उत्पन्न होती है, इस दोष के कारण कुटुंब में अनहोनी और रिश्तों में बिखराव पैदा होते हैं। यदि किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष हो तो उसे मंगल दोष को दूर करने के उपाय अवश्य करने चाहिए। विवाह करने से पहले मांगलिक दोष का विचार व राशि मैत्री का विचार अवश्य कर लेना चाहिए, क्योंकि विवाह से पहले यदि इन चीजों पर विचार न किया जाये तो विवाह के पश्चात बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है,

कुंडली मिलान अत्यंत आवश्यक है आजकल की सामाजिक व्यवस्था में अनेक वैवाहिक दम्पत्तियों के संबंध सही नहीं होते अंततः विवाह विच्छेद तक पहुँच जाता है। ऐसी दुखद-घटनाओं को रोकने के लिए सिर्फ गुण मिलान या मंगल दोष का विचार कर लेने से कुंडली के अन्य दोष दूर नहीं होते। इसीलिए विवाह पूर्व कुंडली का सही मिलान करके ही किसी नतीजे पर पहुंचें। अगर ग्रहों की स्थिति थोड़ी ऊपर नीचे हो तो उसका भी उपाय होता है। इसलिए कुंडली का सही मिलान किया जाना चाहिए।

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