पूरे संसार में आदम काल से ही इंसान चित्र और मूर्ति बनाता आ रहा है | कुछ चित्र और मूर्ति परिस्थिति बताने के लिये , कुछ महिमा मंडल करने के लिये , कुछ अपने आदर्शो से प्रेरणा पाने के लिये और कुछ मूर्ति क़ुआण्टम स्कालर एनर्जी पाने के लिये बनाई जाती है|
मूर्ति पूजन मूल रूप से आज से 2000 साल पूर्व बुद्धिस्ट के द्वारा भगवान बुद्ध की मूर्ति पूजा से शुरू हुआ जो की अन्य धर्मो में फैल गया | रोमन काल में भी रोम में मूर्ति पूजा होती थी | |
अपनी आस्था और धर्म को फैलाने के अलावा हम मूर्ति पूजा अपने आदर्शो से प्रेरणा पाने और स्कालर क़्वांटम एनर्जी पाने के लिये करते हैं | |
जब हम किसी चित्र या मूर्ति का अवलोकन करते हैं तब उस मूर्ति या चित्र से सम्बंधित आट्रिब्यूट्स ह्मारे मन में आते हैं जो कि ह्मारे ब्रेन को एक्टीवेट कर देते हैं और हम अपने आप को उन्हीं आट्रिब्यूट्स से परिपूर्ण पाते हैं | जैसे कि लक्ष्मी जी के चित्र में उनके मुख और विभिन् वस्तुओं को देख हम सब वह पाना चाहते हैं और ह्मारा दिमाग वैसा ही खून का दौरा और हार्मोंस डिसचार्ज करता है | इस दौरान आंखों के द्वारा भी उर्जा का विसर्जन और ग्रहण होता है , फिर मन्त्र का उच्चारण करने से भी आप उर्जा विसर्जन करते हैं और फिर ग्रहण करते हैं | |
हम मंदिरों में जाते हैं और बस प्रभु को प्रसाद अर्पण करने की जल्दी में रहते हैं | कभी आप गुजरात और साउत इंडिया में जायें और देखें कि लोक शान्ती से प्रभु के मंत्रों का उच्चारण करते हुए मूर्ति पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं | इसीलिये मंत्र का सही उच्चारण जरूरी है और शांत मन से पूरी मूर्ति का अवलोकन करना भी जरूरी | इस मंत्र और आंखों की उर्जा को एलेक्ट्रो मेगनेटिक एनर्जी कहते हैं | |
जब हम मूर्ती को जल से साफ करते हैं तो हम अपनी नेगेटिव एनर्जी उस मूर्ति में प्रवाहित कर रहे होते हैं| खास कर के शिव लिंग पे | इसी लिये शिव लिंग से निकले जल को ग्रहण करना तो दूर लाँघा भी नहीं जाता है | |
प्रायः देखा गया है कि लोग एक संग शिव लिंग को स्पर्श करके पूजा कर रहे होते हैं जो की गलत है | इससे एक दूसरे के नेगेटिव एनर्जी ट्रॅनस्मिट हो जाती है और हम अक्सर बीमार पड़ जाते हैं या शिव लिंग पूजन का लाभ नहीं उठा पाते हैं |
आप सबसे पहले शिव लिंग को बिगर हॅट लगाये शिव लिंग को धोये , फिर उस को विभिन् सामग्री से स्नान कराये , और मंत्र के द्वारा उस लिंग में पॉज़िटिव एनर्जी प्रवाहित करें और फिर अपने दोनों हाथों से दबा कर पॉज़िटिव क़ुआण्टम स्कालर एनर्जी को प्राप्त करें | इसीलिये शिवालय में स्नान कर साफ वस्त्र पहन कर ही लिंग छूने की आज्ञा होती है | इसी लिये एक व्यक्ति या पंडितजी के द्वारा पूजन कराये जो की पूर्ण रूप से शुद्ध हो और मंत्रों का सही उच्चारण करें और बाकी लोग देखने और सुनेने से एनर्जी प्राप्त करें |
स्टोन और मेटल्स में भी अलग अलग एनर्जी लेवेल एमिट करने की क्षमता होती है | काले स्टोन में क़्वार्टज़ बहुत ज्यादा होती है जिसके कारण मूर्ति या लिंग अधिक उर्जा ग्रहन करता है और उत्सर्जित करता है | तभी तो घर में ग्रेनाइट स्टोन लगाना वास्तु शास्त्र में माना है | घरों में वह बहुत नेगेटिव एनर्जी अब्ज़ॉर्ब कर लेता है फिर संपर्क में आने पर उत्सर्जन करता है |
जब भी मंदिर जाये या घर में ही पूजा करें तो ध्यान रहे कि पहले मूर्ति या लिंग को पानी से धोकर फिर विभिन् पदार्थो से धो, अलिंकृत करे और फिर प्रभु के चरण या लिंग को दबा कर पॉज़िटिव एनर्जी ग्रहन करे | मूर्ति के सभी अट्रिब्यूट्स पर ध्यान केन्द्रित करे और उसे अपने मस्तिष्क पर उतार लें, तब ही आप अपनी आत्मा को इस ब्रहमांड से जोड़ पायेंगे और उर्जा प्राप्त कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे , अन्यथा चित्र और मूर्ति तो निर्जीव है | जो कुछ भी होना है वह ह्मारे अंदर की आत्मा में होना है |
आत्मा से वातावरण , वातावरण से मूर्ति या चित्र और फिर से वातावरण में और आप की इन्द्रियों के द्वारा आप के मस्तिष्क में और अंत में आप की आत्मा में समाहित होता है।