सार संक्षेपः
संगीत चिकित्सा से तात्पर्य है स्वस्थ रहने और बने रहने के लिए संगीत का प्रयोग करना। चिकित्सकीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सांगीतिक तत्वों का एकल या सामूहिक प्रयेाग ही संगीत चिकित्सा है। ऐसी चिकित्सा पद्धति जिसमें सटीक कार्यप्रणाली एवं प्रक्रिया का प्रयोग संगीत को प्रभावशाली ढंग से उपचार में प्रयोग करने में किया जाए, संगीत चिकित्सा कहलाती है।
संगीत चिकित्सा विज्ञान और कला का समन्वय है। यह भ्रामक जानकारी है कि संगीत पर आधारित अधिकांश सम्बन्धी अनुसंधान सिर्फ विदेशों में हो रहे हैं, लेकिन भारत इस मामले मंे अब पीछे नहीं है, जबकि भारत में शुरू से ही संगीत की समृद्ध परम्परा रही है, आज भी है, लेकिन यहाँ संगीत के चिकित्सा संबंधी पहलू पर कभी इतना गौर नहीं किया गया।“
जहाँ एक ओर भारतीय संगीत की मधुर स्वर लहरियों से सारी दुनिया को मंत्र-मुग्ध करने का काम महान् कलाकारों ने किया है, वहीं अब भारतीय संगीत चिकित्सक भी विश्व-समुदाय को अपना चमत्कार दिखाने को तैयार हैं। इस षोधपत्र का प्रमुख उद्येष्य ‘‘भारतीय में संगीत चिकित्सा पद्धति’’ के प्रचलन को उजागर करना है।
परिचयः
मानव विकास क्रम में विकसित प्राचीन संगीत पद्धति का तर्कपूर्ण एवं उपचार संबंधी प्रयोग सिद्ध स्वरूप ही संगीत चिकित्सा है । उपचार संबंधी व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु पेशेवरों द्वारा सांगीतिक तत्वों का चिकित्सकीय, प्रमाण सिद्ध प्रयोग विधि एवं प्रक्रिया संगीत चिकित्सा कहलाती है।1 सांगीतिक तत्व जैसे ध्वनि, लय, गीत आदि का प्रयोग जब निश्चित कार्यविधि द्वारा निष्चित स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु किया जाता है, तो संपूर्ण प्रक्रिया संगीत चिकित्सा कहलाती हैै। स्वस्थ रहने और निश्चित मानसिक एवं शारिरिक स्वास्थ्य बनाये रखने हेतु संगीत चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। शारिरिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, बौद्धिक, तार्किक एवं सामाजिक अथवा सामुदायिक आवश्यकताओं को चिकित्सकीय प्रविधि की परिधि में रहकर पूर्ण करना संगीत चिकित्सा का उद्देश्य माना जा सकता है। अन्य शब्दों में योजनाबद्ध एवं रचनात्मक रूप मंे सकारात्मक परिणामांे की प्राप्ति हेतु संगीत का प्रयोग चिकित्सा कहलाती है। संगीत एक ऐसे तत्व के रूप मंे जाना जाता है जो व्यक्तित्व विकास, सम्प्रेषण कौशल विकास, रचनात्मकता एवं सृजनशीलता विकास, अभिव्यक्ति एवं अनुभूति परख योग्यताओं के विकास में सकारात्मक योगदान देता है। भ्रूण से मृत्युपर्यन्त संगीत संपूर्ण जीवन चक्र को प्रभावित करता है। यह एक विश्वव्यापी भाषा है जो प्रत्येक को किसी न किसी रूप मंे प्रभावित करती है।
संगीत का रूप कोई भी हो माध्यम कुछ भी हो परंतु स्वर, ताल लय तत्व मूलतः समान ही होंगे। संगीत चिकित्सा का मूल आधार भी स्वर लय एवं काव्य जो हमारे ऊपर प्रभाव डालते हैं।
संगीत सुनते समय हमारे मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों में गतिविधियां बढ़ जाती है। सुमधुर एवं पसंदीदा संगीत हमारे संपूर्ण चित्त को आकर्षित कर एकाग्रता प्रदान करता है। यदि संगीत किसी घटनाक्रम से जुड़ा है तो हमें उसकी याद तुरंत आ जाती है। जानकार श्रोता स्मृति के आधार पर संगीत की तुलना एवं विश्लेषण करता है। अल्पज्ञानी सिर्फ सुनकर समग्र प्रभाव से ही आल्हादित होता है अतः प्रत्येक प्रकार का संगीत अथवा एक ही प्रकार का संगीत विभिन्न श्रोता वर्ग के मस्तिष्कों के भिन्न-भिन्न अंषों/ग्रंथियों आदि पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालता है । चिरपरिचित संगीत बुद्धि के तार्किक एवं स्मृति पक्ष को प्रभावित करता है और व्यक्ति पूर्व अर्जित ज्ञान से उपलब्ध संगीत की तुलना एवं मूल्यांकन करता है। अज्ञात या अल्प ज्ञात संगीत सिर्फ मनोरंजन करता है उसमंे व्यक्ति समझबूझ, स्मृति और तर्क का प्रयोग नहीं करता है। मानसिक गतिविधियां, रासायनिक उत्सर्जन को प्रभावित करती हैं, जो हार्मोनल नियंत्रण एवं एंजाइम्स आदि के स्त्राव के रूप में होता है। ”मस्तिष्क का अग्रभाग सेरिब्रम और हाइपोथैलमस से बना होता है। सेरिब्रम विभिन्न कार्यों मंे समन्वय के लिए कई क्षेत्रों जैसे प्रेरक क्षेत्र, संवेदी क्षेत्र, श्रवण क्षेत्र मंे बंटा होता है। हाइपोथैलमस भूख-प्यास, ताप की मात्रा तथा भावनात्मक क्रियाओं का ज्ञान कराता है। यह पियूस ग्रंथि से हार्मोनो का स्त्रावण को उत्तेजित करता है तथा कुछ हार्मोनों का संश्लेषण भी करता है।2 वर्णित समस्त कार्य शरीर की विभिन्न क्रियाओं मंे समन्वय और संतुलन बनाते हैं। संगीत इन भागों पर पर्याप्त प्रभाव डालता है। जिससे इनकी गतिविधि बढ़ जाती है और शरीर पर प्रभाव स्पष्ट दिखने लगते हैं।
संगीत-चिकित्सा मनोरोगियों को निश्चय ही आराम दे सकती है, लेकिन यह सोचना कि केवल गाने भर से किसी मनोरोग से पूर्णतः छुटकारा पाया जा सकता है, सही नहीं होगा। कुछ कठिन रोग तो निश्चय ही ऐसे होते है जिन पर संगीत द्वारा नियंत्रण पाना असंभव ही है, पर जिन रोगों के उपचार में संगीत अपना अनुकूल प्रभाव दिखाता है, उसमें भी केवल संगीत का एकांतिक प्रभाव नहीं होता। मनोरोगियांे के उपचार मंे वस्तुतः अंतरशास्त्रीय अधिगमन (इण्टर-डिसिप्लिनरी एप्रोच) की आवश्यकता है न कि किसी एक पद्धति के एकांतिक उपयोग की। शारीरिक, रासायनिक, सामाजिक और मनोविश्लेषणात्मक उपचारों के साथ-साथ संगीत-चिकित्सा भी उपयोग में लाई जाए तो इलाज अधिक प्रभावी हो सकता है।
ज्ञातव्य है कि देष के सर्वप्रथम संगीत चिकित्सक भास्कर खांडेकर, विगत 20 वर्षों से संगीत चिकित्सा के क्षेत्र में कार्य करते हुए हजारों रोगियों की चिकित्सा कर चुके हैं तथा देश के अनेक शहरों में चिकित्सा-शिविर और व्याख्यान प्रदर्शन कर चुके हैं। दूरदर्शन और आकाशवाणी से भी इनके कार्यक्रम का प्रसारण हो चुका है। भारतीय चिकित्सा-पद्धति का विश्वभर मंे प्रचार-प्रसार करने के लिए यह एक सराहनीय कदम है।“
वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि अस्सी प्रतिशत से अधिक बीमारियों का मूल मानसिक कारण ही है। इसके नियन्त्रण के क्षमता संगीत में है। केवल स्वर और राग ही इसमें सहायक नहीं, अपितु ताल और उसमें निहित लय भी इसके सहायक उपकरण हैं परन्तु इसमें स्वरों का विशेष महत्त्व है। संगीत चित्त को स्थिरता प्रदान करता है, जिससे व्यक्ति तनावरहित हो जाता है। मानसिक रूप से विक्षिप्त एवं अन्य असाध्य मानसिक रोगों के लिए संगीत अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है। इस चिकित्सा पद्धति का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि इस चिकित्सा का कोई दुष्परिणाम नहीं हो सकता, यह किसी भी परिस्थिति में लाभदायक ही होगा।
अनुसन्धान से पता चलता है कि शरीर की यंत्रणा सहन करने की कुदरती क्षमता संगीत से बढ़ती है। संगीत सुनाते हुए जचगी होने पर स्त्रियों को अॅनेस्थेशिया कम मात्रा में देने से काम चल जाता है, ऐसा टेक्सस मेडिकल सेंटर में निष्कर्ष निकाला गया है। नींद न आने की बीमारी (निद्रानाश)के रोगियों के अस्सी प्रतिशत रोगियों के लिए सौम्य मृदु संगीत और शास्त्रीय संगीत उपयोगी सिद्ध हुआ है।
उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए अल्जायमर्स के रोगियों के हाथ तथा पैरों पर काबू रखने के लिए संगीत का प्रयोग हो रहा है। दिन पूरे होने से पहले जो बच्चे पैदा होते हैं, उनके स्वस्थ विकास के लिए संगीत का प्रयोग हो रहा है। अन्य चिकित्सा के साथ-साथ संगीत चिकित्सा की जाने से भूख, श्वासोच्छ्वास आदि में सुधार होने लगता है। मोजार्ट के संगीत से बुध्यंक अर्थात् प्ण्ॅण् में बढ़ोत्तरी संभव है, ऐसा अनुसन्धान के पश्चात् पाया गया है-वैसे इस विषय में अनुसन्धान जारी है।
वर्तमान समय में अनर्गल विषयों की ओर आकृष्ट युवा-पीढ़ी अनेक मानसिक और शारीरिक दुष्परिणामों से ग्रसित हो रही है। ऐसी परिस्थितियों मंे संपूर्ण परिवेश को सौम्य, सुन्दर, मधुर, शान्त बनाने में एवं शारीरिक-मानसिक उद्विग्नता में सहयोगी संगीत की ओर उन्मुख अग्रसर होकर तनावग्रस्त वातावरण से छुटकारा पा सकते हैं।