नवरात्र का दूसरा दिन: जानिए, मां ब्रह्मचारिणी की कथा, महत्व, पूजन विधि, मंत्र और आरती

Indian Astrology | 26-Mar-2020

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माता ब्रह्मचारिणी मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप हैं। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। भगवान शिव से विवाह हेतु प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण इन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्म का अर्थ यहां तप से है और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली है। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।

मां दुर्गा का यह रूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। विधिपूर्वक इनकी आराधना करने से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की प्राप्ति और उसमें वृद्धि होती है। तो आइए, आपको बताते हैं दुर्गा मां के इस रूप की पूजा विधि, मंत्र, स्तुति, आरती, कथा, स्वरूप और महत्व के बारे में...  

मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप

देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप, यानी तपस्या का मूर्तिमान हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल है। ये श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं। भक्त इन्हें शिवस्वरूपा, गणेशजननी, नारायणी, विष्णुमाया, पूर्णब्रह्मस्वरूपिनी आदि नामों से जानते हैं।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा महत्व

देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना करने से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम, आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। इसलिए कठिन से कठिन परिस्थिति में भी वह मार्ग से विचलित नहीं होता। देवी ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों में दुर्भावनाओं, दुर्गुणों और दोषों का नाश करती हैं। उनके तप के प्रभाव से जीवन में व्याप्त अविवेक, लालच और तृष्णा का नाश होता है। जीवन में धैर्य, साहस और उत्साह का समावेश होता है। व्यक्ति मज़बूत बनता है। वे लोग जिनके जीवन में अंधकार और ढेर सारी परेशानियां है, उनके लिए मां दुर्गा का यह स्वरूप दिव्य और अलौकिक प्रकाश लेकर आता है।

मां ब्रह्मचारिणी का मंगल पर नियंत्रण है। इसलिए इनकी उपासना करने से मंगल ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते हैं। मां की कृपा से भक्तों को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में शिथिल होता होता। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी मां की कृपा प्राप्त करता है।  

इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी मां ब्रह्मचारिणी की उपासना करते हैं जिससे सामने आने वाली किसी भी चुनौती के लिए वे तैयार रहें और अपना जीवन सफल बना सकें। 


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मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है। प्रात: जल्दी उठकर इस दिन स्नानादि करके मां की पूजा करते हुए उन्हें अक्षत, रोली, चंदन, धूप, दीप चढ़ाना चाहिए। मां की पूजा में फूलों का प्रयोग ज़रूर करना चाहिए। मां को कमल और अरहुल का फूल बहुत पसंद है इसलिए उन्हें ये फूल अर्पित करने चाहिए। अक्षत व कुमकुम करने के बाद देवी को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। माता को पान, सुपारी भेंट करनी चाहिए। इस दिन चीनी का भोग अवश्य लगाना चाहिए। ब्रह्मणों को चीनी दान करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।

इस दिन कलश देवता की पूजा करने से दोगुना फल मिलता है। इसके बाद नवग्रह पूजा करवानी चाहिए। अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी योग्य पंडित से दुर्गा सप्तशती का पाठ कराने से मां ब्रह्मचारिणी बहुत प्रसन्न होती हैं।     


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मां ब्रह्मचारिणी की आराधना हेतु ग्रंथों में अनेक मंत्रों का उल्लेख मिलता है। पूजा के समय इन सभी मंत्रों का उच्चारण कल्याणकारी माना जाता है। इनके उच्चारण से सांसारिक जीवन में मान-सम्मान, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है। काम व क्रोध के निवारण के लिए माता के इन मंत्रों का विधि विधान से पूजा करते समय उच्चारण करना चाहिए। पूजा करने के बाद मां ब्रह्मचारिणी की कथा ज़रूर पढ़नी या सुननी चाहिए। 

माता ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी का जन्म हिमालय राज पर्वत के घर हुआ था। उनकी माता का नाम मैना था। एक बार नारदजी से हिमालय राज ने कन्या के भविष्य के बारे में पूछा। तब नारद जी ने कन्या के विवाह में अवरोध की बात कही और इसके निवारण हेतु कन्या को व्रत, तप करने के उपाय बताए।

नारद जी के कहे अनुसार कन्या तप में लीन हो गई और कई वर्षों तक समस्त देव और ब्रह्मदेव की आराधना की। देवी के द्वारा की गई तपस्या का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास जी ने कुछ इस तरह किया है:

कछु दिन भोजन वारि बतासा।

कीन्ह कछुक दिन कठिन उपवासा।।

देवलोक के समस्त देवों ने कन्या की अलग-अलग तरह से परीक्षा ली। देवी हर परीक्षा में उत्तीर्ण हुईं। उनकी कठिन तपस्या व व्रत से देव समुदाय सहित साक्षात ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्हें पति के रूप में भगवान शिव को पाने का वरदान प्राप्त हुआ। स्वयं भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उनसे विवाह किया। इस तरह उन्हें भगवान शिव की अर्धांगिनी बनने का अवसर मिला। भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तप किया था इसलिए उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है।  

मंत्र

ऊँ देवी ब्रह्मचारिण्यै नम:

 प्रार्थना

दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।

देवि प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

मां ब्रह्मचारिणी की स्तुति

या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थ: देवी मां, सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मैं बारंबार प्रणाम करता/करती हूं।

ध्यान मंत्र

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥

परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।

पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥  

स्रोत

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।

ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।

शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

माता ब्रह्मचारिणी की आरती

जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥

ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥

ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सरल संसारा॥

जय गायत्री वेद की माता। जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥

कमी कोई रहने ना पाए। उसकी विरति रहे ठिकाने॥

जो तेरी महिमा को जाने। रद्रक्षा की माला ले कर॥

जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर। आलस छोड़ करे गुणगाना॥

माँ तुम उसको सुख पहुँचाना। ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥

पूर्ण करो सब मेरे काम। भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥

रखना लाज मेरी महतारी।  

शुभ रंग

मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें। इस रंग का इस्तेमाल पूजा और पढ़ते समय करना काफ़ी शुभ माना जाता है।


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