नवरात्र का पांचवां दिन: संतान प्राप्ति के लिए ऐसे करें स्कंदमाता का व्रत एवं पूजन

Indian Astrology | 28-Mar-2020

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नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा स्कंदमाता के रूप में पूजी जाती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी ने कठोर तपस्या करने के बाद भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाया था। उसके बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम स्कंद कुमार रखा गया। क्योंकि वे स्कंद कुमार की माता थीं इसीलिए उन्हें देवी स्कंदमाता के नाम से जाना गया। पौराणिक ग्रंथों में भगवान स्कंद कुमार का उल्लेख कार्तिकेय के रूप में भी मिलता है। देवी स्कंदमाता मोक्ष के द्वार खोलने वाली, परम सुखदायी हैं। ये अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। इनकी आराधना करने से संतान की भी प्राप्ति होती है। तो आइए, जानते हैं देवी स्कंदमाता के व्रत एवं पूजन के विधि-विधान और नियम...

देवी स्कंदमाता का स्वरूप

स्कंदमाता का स्वरूप बेहद अद्भुत है। इनकी चार भुजाएं हैं। यह दायीं तरफ़ की ऊपर वाली भुजा में स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं और नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाएं ओर की ऊपर वाली भुजा वर मुद में है जबकि नीचे वाली भुजा में भी कमल का फूल है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र (श्वेत) है। कमल के आसन पर विराजमान रहने के कारण इन्हें पद्मासन भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। 

  


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स्कंदमाता की उपासना का महत्व

देवी स्कंदमाता अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इनकी उपासना से इस मृत्युलोक में ही भक्त को परम सुख और शांति का आभास होने लगता है। वह अपनी तमाम लालसाओं पर विजय प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करता है। वे दंपत्ति जो संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें मां दुर्गा के इस रूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए। मां स्कंदमाता संतान प्राप्ति का वरदान देने वाली हैं। जो भी पूरे विधि विधान से इनकी आराधना करता है उसकी इच्छा पूरी होती है। लेकिन ध्यान रहे, स्कंदमाता की पूजा में कुमार कार्तिकेय का होना ज़रूरी होता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार स्कंदमाता का बुध ग्रह पर नियंत्रण होता है इसलिए उनकी उपासना करके आप बुध ग्रह से संबंधित सभी दोष दूर कर सकते हैं। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। मां की उपासना करने से साधक की बुद्धि का विकास होता है।

स्कंदमाता की पूजन विधि

स्कंदमाता की पूजा शास्त्रीय नियमों के अनुसार करनी चाहिए। इनकी पूजा में धनुष-बाण अर्पित करने का विशेष महत्व है। इन्हें सुहाग का सामान जैसे कि लाल चुनरी, बिंदी, लिप्सटिक, लाल चूड़ियां, सिंदूर, नेलपेंट आदि अर्पित करने चाहिए। औरतें अगर लाल चुनरी में सुहाग और श्रृंगार के सामान के साथ लाल फूल और अक्षत लपेट कर अर्पित करें तो मां उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं।

मां को पीली वस्तुएं प्रिय होती हैं इसलिए इन्हें पीली चीज़ों का ही भोग लगाना चाहिए। इन्हें केसर डालकर बनाई गई खीर का भोग लगाएं। मां को इस दिन फलों में केला ज़रूर चढ़ाएं। पूजा के बाद यह प्रसाद ब्राह्मणों को दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

पूजा करते समय मां की स्तुति और मंत्रों का जाप करें। उनकी कथा सुनें और अपनी क्षमतानुसार दुर्गा सप्तशती का पाठ (Durga Saptashati Path) करवाएं।

स्कंदमाता की पौराणिक कथा

देवीभाग्वत पुराण के अनुसार नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा का विधान है। स्कदामाता देवी दुर्गा का ममतामयी रूप हैं। हालांकि मां शांत स्वभाव की लगती हैं लेकिन यदि कोई भी उनकी संतान को कष्ट पहुंचाए तो वे उग्र रूप भी धारण कर सकती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार जब देवराज इंद्र मां के पुत्र कुमार कार्तिकेय को परेशान करते हैं तो मां कार्तिकेय को गोद में बैठा कर सिंह पर सवार हो जाती हैं और रौद्र रूप धारण कर लेती हैं। मां दुर्गा के इस रूप को देखकर देवराज इंद्र भयभीत हो जाते हैं। वे स्कंदमाता के रूप में मां दुर्गा की स्तुति करते हैं। पुराणों में बताया गया है कि मां की चार भुजाएं हैं। इनमें से एक भुजा में वे कार्तिकेय को पकड़े हुए दिखती हैं। पुराणों में कार्तिकेय को गणेश का भाई कहा गया है। अत: मां स्कंदमाता पार्वती का ही दूसरा रूप हैं। मां की इस रूप में उपासना करने से आपको भगवान कार्तिकेय का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

मंत्र 

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

प्रार्थना (श्लोक)

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ 

स्कंदमाता की स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्घ अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है या मैं आपको बारंबार प्रमाण करता/करती हूं। हे मां! मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।


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ध्यान

वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्विनीम्॥

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पञ्चम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।

मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् पीन पयोधराम्।

कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥   

स्तोत्र पाठ

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।

समग्रतत्वसागरम् पारपारगहराम्॥

शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।

ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रदीप्ति भास्कराम्॥

महेन्द्रकश्यपार्चितां सनत्कुमार संस्तुताम्।

सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलाद्भुताम्॥

अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।

मुमुक्षुभिर्विचिन्तितां विशेषतत्वमुचिताम्॥

नानालङ्कार भूषिताम् मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।

सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेदमार भूषणाम्॥

सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्र वैरिघातिनीम्।

शुभां पुष्पमालिनीं सुवर्णकल्पशाखिनीम्

तमोऽन्धकारयामिनीं शिवस्वभावकामिनीम्।

सहस्रसूर्यराजिकां धनज्जयोग्रकारिकाम्॥

सुशुध्द काल कन्दला सुभृडवृन्दमज्जुलाम्।

प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरम् सतीम्॥

स्वकर्मकारणे गतिं हरिप्रयाच पार्वतीम्।

अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥

पुनः पुनर्जगद्धितां नमाम्यहम् सुरार्चिताम्।

जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवी पाहिमाम्॥


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स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कन्द माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता॥

सबके मन की जानन हारी। जग जननी सबकी महतारी॥

तेरी जोत जलाता रहूं मैं। हरदम तुझे ध्याता रहूं मै॥

कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥

कही पहाड़ों पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा॥

हर मन्दिर में तेरे नजारे। गुण गाए तेरे भक्त प्यारे॥

भक्ति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥

इन्द्र आदि देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥

दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए। तू ही खण्ड हाथ उठाए॥

दासों को सदा बचाने आयी। भक्त की आस पुजाने आयी॥

स्कंदमाता का पसंदीदा फूल

स्कंदमाता को प्रसन्न करने के लिए पूजा करते समय उन्हें लाल रंग के पुष्प ज़रूर अर्पित करें।

शुभ रंग

स्कंदमाता की पूजा नवरात्र की पंचमी तिथि को की जाती है। इस बार पंचमी का शुभ रंग श्वेत (सफेद) है। यह रंग शांति, सद्भाव और सादगी का प्रतीक है। श्वेत रंग का संबंध चंद्रमा और शुक्र से भी है इसलिए इस दिन श्वेत रंग के वस्त्र धारण करने से आपको स्कंदमाता के साथ-साथ चंद्रमा और शुक्र से भी शुभ फल की प्राप्ति होगी।


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