दर्द होता है बीमारियों का दर्पण
Anamika Prakash Shrivastav | 22-Jun-2016
Views: 3147दर्द बीमारियों का आईना है । डाॅक्टर को बीमारी का चेहरा दर्द के आईने में ही दिखता है । दर्द का
कारण और उससे छुटकारा चिकित्सकों के दो प्रमुख उद्देश्य होते हैं । दुनियां में कुछ बच्चे ऐसी
जन्मजात बीमारी से पीड़ित होते हैं जिसमें वे अपने दर्द, घाव, जलन की पीड़ा महसूस नहीं कर सकते, यहाँ तक कि वे आग में झुलस कर भी मुस्कराते रह सकते हैं । भूख लगने पर अपनी अंगुलियों को चबा सकते हैं और अपनी जीभ को भी भोजन बना सकते हैं । ऐसे बच्चों का संवेदन तंत्र अविकसित अवस्था में होता है जिसके कारण वे दर्द की अनुभूति नहीं कर सकते । ऐसे बच्चे अधिक दिनों तक जीवित भी नहीं रह पाते।
‘‘प्रिकिंग पेन’’ या चुभने वाला दर्द, सिर्फ त्वचा के एक खास भाग में थोड़े समय के लिए महसूस होता है । जबकि ‘डीप पेन’’ साधारणतः त्वचा की गहराई में पाये जाने वाले तंतुओं से उत्पन्न होता है । ‘‘प्रिकिंग-पेन’’ की अपेक्षा यह शरीर के काफी हिस्से में फैला रहता है और धीरे-धीरे बढ़ता है । अगर दर्द काफी दिन तक बना रहे तो यह विकृतिजन्य (पैथालाॅजिकल) बन जाता है । विकृति जन्य दर्द चार तरह का हो सकता है - सतही, गहन, तन्त्रिका अन्य (न्यूरालाॅजिकल) और मनोवैज्ञानिक । हालांकि इन दर्दों के अलग-अलग लक्षण होते हैं, पर इनकी एक समानता है कि ये मनुष्य के मूड़, उसकी भावनाओं और व्यवहार को अवश्य परिवर्तित करते हैं । भय, निराशा, चिंता और उत्तेजना ऐसे दर्दों के सामान्य लक्षण हैं ।
यदि शरीर के विभिन्न भागों में उत्पन्न होने वाले दर्दों की सूची बनायी जाये तो पता चलेगा कि दर्द की अनुभूति से कोई भी भाग अछूता नहीं रहा है । सतही दर्द मांसपेशियों की हरकतों से तेज या कम हो सकता है और सामान्यतः शरीर के एक विशेष हिस्से में ही उसका असर महसूस होता है । गहरा दर्द अपेक्षाकृत बहुत कष्टप्रद और शरीर के बड़े हिस्से में फैला हुआ होता है । मनोवैज्ञानिक दर्द उन लोगों को अधिक महसूस होता है जो मानसिक रूप से टूटे हुए होते हैं । व्यक्ति जितना भावुक होगा, तनाव से पैदा हुए दर्द की संभावनाएं उतनी ही अधिक होंगीं । यदि व्यक्ति आशावादी दृष्टिकोण रखने वाला होता है तो वह अपने मामूली दर्द को दर्द न मानकर ही अच्छा इलाज स्वयं कर सकता है, पर यदि वह निराश और दुखी है तो दर्द और तनावों में ही जिंदगी गुजारनी होगी ।
दर्द शरीर के एक भाग से शुरू होकर दूर के किसी भाग में अपना असर दिखा सकता है । इसे ‘‘वांडरिंग पेन’’ कहते हैं । ‘‘इडियोपैथिक पेन’’ उस दर्द को कहते हैं जिसका कोई कारण नहीं होता । ‘‘जंपिंग पेन’’ जोड़ों के दर्द में देखा जाता है । ‘‘लाइटनिंग पेन’’ एक झटका देकर चला जाता है, लेकिन कुछ क्षण बाद ही फिर से शरीर के उस भाग को हिला जाता है । ‘‘टियरब्रेटिंग पेन’’ और ‘‘बोरिंग पेन’’ में ऐसा लगता है कि दर्द वाले अंग में कोई छेद कर रहा हो । ‘‘हंगर पेन’’ भूख मिट जाने पर खुद ही गायब हो जाता है । पेट के अल्सर के रोगियों को यह दर्द अक्सर होता है । ‘‘फंक्शनल पेन’’ मनोविकार ग्रस्त रोगियों को ही होता है । शरीर के किसी भाग पर जब चोट लगती है तब विशिष्ट स्नायु संदेश ग्रहण कर लेते हैं । ये संवेदनशील स्नायु तंत्र मस्तिष्क को संदेश पहुंचाते हैं । शरीर के कुछ अंग ऐसे भी होते हैं जहां दर्द महसूस करने वाले स्नायु तंत्र नहीं के बराबर हैं । यही कारण है कि हड्डियाँ और मस्तिष्क के रोग दर्दहीन होते हैं । हड्डियों में दर्द तभी महसूस होता है, जब उनसे जुड़ी झिल्ली में रोग का असर हो । दर्द की संवेदना पशु और पक्षियों में सर्वाधिक होती है, अपेक्षाकृत मछलियों और रेंगने वाले जन्तु दर्द का अनुभव करने में असमर्थ होते हैं । कभी-कभी मस्तिष्क को दर्द के बारे में गलत सूचनाएं मिलती हैं या वह सूचनाओं के सही स्त्रोत को नहीं खोज पाता । इसको ‘‘रेफर्ड पेन’ कहते हैं । दर्द की घटना के चिकित्सकीय विश्लेषण को ‘‘गेट कन्ट्रोल थ्योरी’’ के नाम से जाना जाता है। इसके अनुसार मेरुदण्ड के पास एक ‘‘गेट’’ होता है । ऐसा विश्वास किया जाता है कि मस्तिष्क के लिए जरूरी संवेदना (जैसे दर्द) ही इस रास्ते होकर जा सकते हैं । साधारण तंतुओं के उत्पन्न होने वाली संवेदनाएं आने के समय यह गेट बंद हो जाता है । सिर दर्द के कारण भावनात्मक अधिक और शारीरिक कम होता है। सिर दर्द के लक्षण, कारण और उसके प्रकार रोगियों की जाति, संस्कृति और सामाजिक पृष्ठभूमि पर निर्भर करते हैं । जीवनयापन की परिस्थितियाँ, आयु, तनाव को झेलने की क्षमता भी सिर दर्द उत्पन्न करने के लिए महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं । परिसरीय ‘‘परिफेरल’’ और केन्द्रीय तंत्रिका-तंत्र की जटिलता के कारण सिर और मुंह के किसी भाग में हो रहे दर्द के विषय में जानकारी मुश्किल से मिल पाती है । सिर में अनेक ऊतक (टिश्यू) होते हैं जिनसे विभिन्न प्रकार का सिर दर्द उत्पन्न हो सकता है । ये दर्द मांसपेशियों के तनाव वास्कूलर परिवर्तन और मस्तिकावरण की उत्तेजना के कारण हो सकते हैं । तनाव से उत्पन्न सिरदर्द से विश्व भर में सर्वाधिक लोग लगभग 50.8 प्रतिशत पीड़ित हैं । माइग्रेन या आधे हिस्से का सिर दर्द एक तकलीफदायक असाध्य रोग के रूप में माना जाता है । यह रोग ‘‘प्रोजिस्ट्रोन’’ हार्मोन की कमी के कारण होना बताया जाता है । गर्भ निरोधक गोलियां भी कुछ स्त्रियों में माइग्रेन उत्पन्न कर सकती हैं ।
दांत में दर्द होना, चेहरे के दर्द का सामान्य लक्षण है । दांतों पर लगे डेंटाइन के ठण्डे-मीठे और कुछ सीमा तक गर्म खाद्य पदार्थों के सम्पर्क में आने से इससे दर्द के होने की संभावनाएं होती हैं । सिर का दर्द शरीर के एक भाग से बढ़ता-बढ़ता कुछ सप्ताह में शरीर के अधिकांश अंगों में फैल जाता है । एक रिपोर्ट के अनुसार 70 वर्ष की आयु तक 50 में से एक ही व्यक्ति ऐसा मिल सकता है जिसे गठिया के दर्द की शिकायत न हों । हाॅस्टर नामक चिकित्सक का कथन है कि हाउकिंग की बीमारी में जो शराब पीने पर ही उभरती है, शराब की एक छोटी सी बूँद ही भयंकर दर्द उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त है । मार्फीन, अफीम, कोडीन और ऐसे ही तत्वों से बनी औषधियां तेज दर्द को एक निश्चित समय के लिए ठण्डा कर देती हैं । मार्फीन के इंजेक्शन से शरीर में हताशा और उत्तेजना की मिश्रित प्रतिक्रिया होती है । एक्यूपंक्चर विधि से जटिल शल्य चिकित्सा से उत्पन्न दर्द को आराम भी मिल सकता है, लेकिन आधुनिक चिकित्सा जगत में यह विधा विवादास्पद है । सम्मोहन के दर्द के उन रोगियों को आसानी से राहत पहुंचाई जा सकती है । जो समान्यतः अनुशासित होते हैं । आॅस्ट्रेलिया के डाॅक्टर फ्रांसिस का कथन है कि भोज्य पदार्थों से उत्पन्न एलर्जी के रोगी बिना औषधि सिरदर्द से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं, केवल उन्हें अपने खाने-पीने की आदतों में परिवर्तन करना होगा। जोड़ों का दर्द भी भोजन परिवर्तन से ठीक किया जाना संभव है ।
वस्तुतः दर्द एक चिन्ह है, बीमारी नहीं । निदान रोग का किया जाना चाहिए, चिकित्सा भी उसी की होनी चाहिए । होता यह है कि आहार-विहार पर नियंत्रण नहीं हो पाता । दर्द उठने पर तुरंत दर्द निवारक औषधि ले ली जाती है । उस समय तो दर्द मिट जाता है, बाद में और तेजी से उभर कर आता है । यदि हम दर्द से मुक्ति चाहते हैं तो उस पर नियंत्रण करने का अभ्यास करें । दर्द अपने पैर जमाये सबसे पहले ही उसे भगाने अथवा न होने देने की रीति-नीति सीखें ।