Sakat Chauth 2020: जानिए, कब है सकट चौथ व्रत? इसकी पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा
Indian Astrology | 09-Jan-2020
Views: 9136संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chatuthi) का व्रत हर महीने रखा जाता है लेकिन माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी का विशेष महत्व है। इसे सकट चौथ (Sakat Chauth), तिलकुटा चौथ (Tilkut Chauth), माघी चौथ (Magh Chauth 2020), संकटा चौथ (Sankata Chaturdashi 2020) आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत रख भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं। जानिए, इस व्रत का तिथि, पूजन विधि (Puja Vidhi) और महत्व के बारे में...
संकष्टी चतुर्थी क्या है?
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक चंद्रमास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस तरह पूरे वर्ष में 13 संकष्टी चतुर्थी व्रत रखे जाते हैं। जनवरी माह में इस बार यह व्रत 14 तारीख़ को रखा जाएगा। इस दिन भगवान गणेश और चंद्रमा की उपासना की जाती है। जो भी सच्चे मन से पूरे विधि विधान से श्रीगणेश की उपासना करता है उसके सारे संकट दूर हो जाते हैं और उसकी हर मनोकामना पूरी होती है।
सकट चौथ व्रत 2020: शुभ मुहूर्त
वर्ष 2020 के लिए सकट चौथ व्रत का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
सकट चौथ के दिन चंद्रोदय का समय: 8:33 पीएम
चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 5:32 पीएम (13 जनवरी, 2020)
चतुर्थी तिथि समाप्त: 2:49 पीएम (14 जनवरी, 2020)
संकष्टी चतुर्थी 2020 की तारीख़ें
2020 में सभी संकष्टी चतुर्थी व्रत की तारीख़ें इस प्रकार हैं:
जनवरी 13, 2020: सकट चौथ या लंबोदर संकष्टी चतुर्थी
फरवरी 12, 2020: द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी
मार्च 12, 2020: भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी
अप्रैल 11, 2020: विकट संकष्टी चतुर्थी
मई 10, 2020: एकदंत संकष्टी चतुर्थी
जून 8, 2020: कृष्णपिंगल संकष्टी चतुर्थी
जुलाई 8, 2020: गजानन संकष्टी चतुर्थी
अगस्त 7, 2020: बहुला चतुर्थी या हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी
सितंबर 5, 2020: विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी
अक्टूबर 5, 2020: विभुवन संकष्टी चतुर्थी
नवंबर 4, 2020: करवा चौथ या वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी
दिसंबर 3, 2020: गणाधिप संकष्टी चतुर्थी
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सकट चौथ का महत्व
संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ है “संकट से मुक्ति”। हर माह यह व्रत संकट से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि संकष्टी के दिन विधि पूर्वक व्रत रखने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और आपके सारे कष्ट दूर करते हैं। लेकिन हरेक संकष्टी चतुर्थी व्रत का अपना विशेष महत्व है।
माघ मास की संकष्टी चतुर्थी को उत्तर भारत में सकट चौथ और दक्षिण भारत में संकटहरा चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। माएं यह व्रत अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए रखती हैं। यह व्रत सूर्योदय से चंद्रमा के उदय होने तक निर्जला रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार व्रत करने से पुत्र पर भगवान गणेश की कृपा बनी रहती है और उस पर कोई संकट नहीं आता। उसकी हर मनोकामना पूरी होती है और वह अपने हर काम में सफल होता है।
सकट चौथ व्रत विधि
आपके पुत्र पर भगवान गणेश की कृपा बनी रहे इसके लिए माएं इस प्रकार सकट चौथ व्रत रखे:
- सकट चौथ के दिन सभी माएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थल पर भगवान गणेश की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें।
- घर की परंपरा के अनुसार भगवान गणेश की पूजा करें और निम्न श्लोक पढ़ें:
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारु भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।। - इसके बाद भालचंद्र गणेश को याद करें और उन्हें पुष्प अर्पित करें।
- पूरे दिन बिना कुछ खाए-पीए निर्जला व्रत रखें।
- भगवान गणेश को गुड़ और तिल से बने लड्डू, शकरकंद और फल का भोग लगाएं।
- पूरे दिन बिना कुछ खाए-पीए निर्जला व्रत रखें।
- सूर्यास्त के बाद फिर से स्नान करके भगवान गणेश की पूजा करें। धूप-दीप जलाएं और पुष्प अर्पित करें।
- चांद निकलने पर व्रत खोलें और सभी को प्रसाद बांटे।
सकट चौथ का व्रत न केवल माएं बल्कि वे स्त्रियां भी रख सकती हैं जो गर्भ धारण करना चाहती हैं या शिशु के रूप में पुत्र पाना चाहती हैं।
सकट चौथ व्रत कथा
सकट चौथ व्रत से जुड़ी कई कथाएं हैं। यहां पढ़िए, मां और बेटे की सकट चौथ की कथा...
एक नगर में एक साहूकार और एक साहूकारनी रहते थे। वे दोनों अधर्मी थे। उन्हें ईश्वर में आस्था नहीं थी। इसलिए उनकी कोई संतान नहीं थी।
एक दिन साहूकारनी पड़ोस के घर गई। उस समय पड़ोसिन सकट चौथ की कथा सुन रही थी। साहूकारनी ने उससे पूछा कि यह क्या है? इस पर पड़ोसिन ने कहा कि आज उसका सकट चौथ का व्रत है इसलिए वह कथा सुन रही है।
साहूकारनी ने फिर पूछा, “इससे क्या होता है?”
पड़ोसिन ने कहा, “सकट चौथ का व्रत करने से अन्न, धन, सुहाग और व्रत सब मिलता है।” यह सुनने के बाद साहूकारनी ने कहा कि यदि उसके गर्भ ठहर जाए तो वह सवा सेर तिलकुट करेगी और सकट चौथ का व्रत रखेगी।
उसने व्रत रखा और सवा सेर तिलकुट चढ़ाया। इससे भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसके गर्भ ठहर गया। उसके बाद उसने कहा कि यदि मेरे पुत्र हो जाए तो मैं ढाई सेर तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत रखूंगी। इसके कुछ दिन बाद उसके पुत्र हुआ। जब वह बड़ा हो गया तो साहूकारनी की इच्छा हुई कि उसका विवाह हो जाए। उसने कहा, “हे भगवान! यदि मेरे पुत्र का विवाह हो जाए तो मैं सवा पांच सेर तिलकुट करूंगी और व्रत रखूंगी।” उसके बेटे का विवाह तय हो गया लेकिन उसने व्रत नहीं रखा। इससे सकट चौथ भगवान नाराज़ हो गएं। उन्होंने फेरे के वक्त दूल्हे को पीपल के पेड़ पर बैठा दिया। शादी में आए लोगों ने उसे बहुत ढूंढा पर वह नहीं मिला। आख़िरकार हताश होकर सब अपने घर चले गए।
एक दिन वही लड़की जिससे उसके पुत्र की शादी होने वाली थी जंगल से गुज़र रही थी। उसे देखकर पीपल के पेड़ पर बैठे लड़के ने कहा, “ओ अर्धब्याही!” इसके बाद वह जब भी उस पीपल के पेड़ के पास से गुज़रती वह उसे अर्धब्याही कहकर पुकारता।
उस लड़की ने परेशान होकर यह बात अपनी मां को बताई। तब दोनों मां-बेटी पीपल के पेड़ के पास गईं और छानबीन की। पता चला यह वही लड़का है जिससे लड़की की शादी होने वाली थी। मां ने लड़के से कहा, “एक तो तुमने मेरी बेटी को अर्धब्याही छोड़ दिया अब उसका मज़ाक उड़ा रहे हो!” फिर उस लड़के ने सारी बात लड़की की मां को बता दी। उसने कहा, “मेरी मां ने तिलकुट चौथ का व्रत नहीं किया इसलिए सकट चौथ माता नाराज़ हो गईं और मुझे पीपल के पेड़ पर बैठा दिया।”
लड़की की मां साहूकारनी के घर जाकर पूछती है कि क्या तुमने सकट चौथ का कुछ माना था? साहूकारनी कहती है, “सकट चौथ नहीं, तिलकुट बोल था।” उसके बाद लड़की की मां साहूकारनी को अपनी और उसके बेटे की सारी बात बताती है। तब साहूकारनी कहती है, “अगर मेरा बेटा वापिस आ जाए तो मैं सवा मन तिलकुट करूंगी।”
सकट देव लड़के को फिर से मंडप में बैठा देते हैं। लड़के का बहुत धूम-धाम से विवाह होता है। फिर साहूकारनी सवा मन तिलकुट चढ़ाती हैं और सकट चौथ का व्रत रखती है। इसके बाद गांव के सभी लोग सकट चौथ का व्रत करने लगें।
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