श्रीयंत्र है मां लक्ष्मी को परम प्रिय, जानिए इसके रहस्यों के बारे में
Indian Astrology | 27-Mar-2020
Views: 4309भारतीय सनातन धर्म में अनेक कामनाओं की पूर्ति हेतु विभिन्न यंत्रों की साधना का विधान है| लेकिन इन सभी यंत्रों में श्री यंत्र सर्वाधिक शक्तिशाली है और इसे यंत्र राज की संज्ञा दी गई है| श्रीयंत्र में सभी देवी-देवताओं का वास होता है| इसे विचारशक्ति, एकाग्रता तथा ध्यान को बढ़ाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है| श्रीयंत्र नाम से ही पता चलता है ये धन की देवी मां लक्ष्मी का यंत्र है| कहते हैं कि जहां श्रीयंत्र की स्थापना होती है वहां मां लक्ष्मी आने के लिए विवश हो जाती हैं, श्रीयंत्र का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति और ध्यान में एकाग्रता के लिए किया जाता है| वास्तुशास्त्रियों का कहना है कि इस यंत्र के गणितसूत्र के आधार पर बनाये गए मंदिर, घर या नगर में अत्यधिक सकारात्मक ऊर्जा होती है| तथा ऐसे स्थान में रहने वाले लोगों में विचारशक्ति, ध्यान, शांति, सहानुभूति, सौहार्द व प्रेम के गुणों का उद्भव होता है| श्री यंत्र में आद्याभगवती श्रीललितमहात्रिपुर सुंदरी का वास है| इसकी सरंचना तथा आकार के बारे में आदिगुरु शंकराचार्य कि दुर्लभ कृति सौन्दर्यलहरी में बड़े रहस्यमय ढंग से चर्चा कि गई है| महालक्ष्मी को श्रेष्ठ माना गया है| और श्रीललितमहात्रिपुर सुंदरी भगवती महालक्ष्मी का श्रेष्ठतम रूप है| भगवती श्रीललितमहात्रिपुर सुंदरी को दशमहाविद्याओं में श्री विद्या नाम से जाना जाता है| श्रीललितमहात्रिपुर सुंदरी ही श्रीयंत्र कि अधिष्ठात्री शक्ति हैं| ब्रम्हपुराण में इनकी साधना के बारे में कहा गया है कि जिसने अनेक जन्मों में कठोर साधना की हो उसी को श्रीविद्या की उपासना का सौभाग्य मिलता है|
पौराणिक मान्यता के अनुसार-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी अप्रसन्न होकर बैकुंठ चली गईं, उनके बिना धरती पर त्राहि-त्राहि मच गई, ब्राह्मण और महाजन वर्ग बिना लक्ष्मी के दीन-हीन, असहाय हो गए, तब ब्राह्मणों में श्रेष्ठ वशिष्ठ ने निश्चय किया कि मैं लक्ष्मी को प्रसन्न कर भूतल पर ले आऊंगा। इस उदेश्य से महर्षि वशिष्ठ बैकुण्ठ में जा कर लक्ष्मी माँ से मिले तो ज्ञात हुआ कि वह अप्रसन्न हैं और वह किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर आने को तैयार नहीं हैं, तब वशिष्ठ वहीं बैठ कर विष्णु की आराधना करने लगे। जब विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो वशिष्ठ ने कहा, हम पृथ्वी पर बिना लक्ष्मी के दुःखी हैं, हमारे आश्रम उजड़ गए हैं। और धरती का वैभव समाप्त हो गया है। भगवान विष्णु, वशिष्ठ को साथ लेकर लक्ष्मी के पास गए और उन्हें मनाने लगे, परन्तु लक्ष्मी नहीं मानीं और उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि मैं किसी भी स्थिति में वापस जाने को तैयार नहीं हूं। क्योंकि पृथ्वी पर साधना और शुद्धि नहीं है। निराश होकर वशिष्ठ पुनः धरती पर लौट आए और लक्ष्मी के निर्णय से सबको अवगत करा दिया। सभी चिंतित थे और समस्या का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे थे। तब देवताओं के गुरु बृहस्पति ने कहा कि अब एकमात्र ‘ श्रीयंत्र साधना ’ ही बची है, और यदि सिद्ध ‘ श्री यंत्र ’ बना कर स्थापित किया जाए, तो निश्चय ही लक्ष्मी को आना पड़ेगा। बृहस्पति के निर्देश से ॠषियों ने धातु पर श्रीयंत्र का निर्माण किया और उस यंत्र को मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठायुक्त किया। दीपावली से दो दिन पूर्व धन त्रयोदशी को उस श्रीयंत्र को स्थापित कर विधि-विधान से उसका षोडशोपचार पूजन किया। पूजन समाप्त होते-होते लक्ष्मी स्वयं वहां उपस्थित हो गईं और बोलीं – ‘मैं किसी भी स्थिति में यहां आने के लिए तैयार नहीं थी, यह मेरा प्रण था, परन्तु बृहस्पति की युक्ति से मुझे आना ही पड़ा। श्रीयंत्र मेरा आधार है और इसी में मेरी आत्मा निहित है। शास्त्रों में वैभव और समृद्धि प्राप्त करने के अनेक उपाय बताए गए हैं। इनमे सबसे सहज, सरल और फलीभूत होने वाले उपायों में से एक है श्रीयंत्र की पूजा-उपासना। मान्यता है कि श्रीयंत्र की आराधना से अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और सुख-शांति के साथ विपुल धन-धान्य का सौभाग्य प्राप्त होता है।
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धातुओं, रत्नों और पत्रों पर होता है श्रीयंत्र का निर्माण-
श्रीयंत्र को भोजपत्र, धातु और रत्नों पर बनाने की परंपरा है। मान्यता है कि भोजपत्र की अपेक्षा तांबे पर बने श्रीयंत्र का फल सौ गुना, चांदी में लाख गुना और सोने पर निर्मित श्रीयंत्र का फल करोड़ गुना प्राप्त होता है। इसी तरह से अलग-अलग धातुओं पर बने हुए श्रीयंत्रो का जीवनकाल भी बताया गया है। कि भोजपत्र पर 6 वर्ष तक, तांबे पर 12 वर्ष तक, चांदी में 20 वर्ष तक और सोना धातु में श्रीयंत्र आजीवन प्रभावी रहता है। 'रत्नसागर' में रत्नों पर भी श्रीयंत्र बनाने की बात लिखी गई है। इनमें स्फटिक पर बने श्रीयंत्र को सबसे अच्छा बताया गया है। भोजपत्र पर केसर की स्याही से अनार की कलम द्वारा श्रीयंत्र बनाया जाना चाहिए। धातु पर निर्मित श्रीयंत्र की रेखाएं यदि खोदकर बनाई गई हों और गहरी हों, तो उनमें चंदन, कुमकुम आदि भरकर पूजन करना चाहिए। 'श्रीसूक्त’ के अनुसार जिसके भी घर में पारद श्रीयंत्र स्थापित होता है, स्वतः ही वहां पर लक्ष्मी का स्थायी वास हो जाता है, जिसके भी घर में पारद श्रीयंत्र होता है, अपने आप में वह व्यक्ति रोग-रहित एवं ॠण-मुक्त होकर जीवन में आनन्द एवं पूर्णता प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है।
श्रीयंत्र की महिमा-
ये तो पूरा संसार जानता है कि धन और संपन्नता के लिए मां लक्ष्मी की कृपा जरूरी है लेकिन मां लक्ष्मी की कृपा मिलती कैसे है, ये बहुत कम लोग ही समझ पाए हैं| आज हम आपको मां लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे अचूक और दिव्य उपाय बताने जा रहे हैं|
श्रीयंत्र की सिद्धि भगवान शंकराचार्य ने की थी|
दुनिया में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और ताकतवर यंत्र श्रीयंत्र ही है|
श्रीयंत्र को धन का प्रतीक मानते हैं लेकिन ये शक्ति और अपूर्व सिद्धि का भी प्रतीक है|
श्रीयंत्र के प्रयोग से सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती है|
श्रीयंत्र के सही प्रयोग से हर तरह की दरिद्रता दूर की जा सकती है|
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एकाग्रता के लिए कैसे करें श्रीयंत्र का प्रयोग-
मां लक्ष्मी का यंत्र होने के कारण ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि श्रीयंत्र से केवल धन की कामना पूरी हो सकती है लेकिन इससे मानसिक शांति और एकाग्रता में भी वृद्धि होती है|
उर्ध्वमुखी यंत्र का चित्र अपने काम या पढ़ने की जगह पर लगाएं|
श्रीयंत्र का चित्र रंगीन हो तो ज्यादा अच्छा होगा|
श्रीयंत्र को इस तरह लगाएं कि ये आपकी आंखों के ठीक सामने हो|
जहां भी श्रीयंत्र को स्थापित करें, वहां गंदगी न फैलाएं, नशा ना करें|
धन के लिए कैसे करें श्रीयंत्र का प्रयोग-
ज्योतिष विशेष्ज्ञों की मानें तो अलग-अलग कामनाओं के लिए श्रीयंत्र का अलग प्रयोग होता है, अगर आपको जीवनभर के लिए धन और संपन्नता चाहिए तो ऐसे करें इस यंत्र का प्रयोग|
स्फटिक का पिरामिड वाला श्री यंत्र पूजा के स्थान पर स्थापित करें|
इसे गुलाबी कपड़े या छोटी सी चौकी पर स्थापित करें|
रोज सुबह इस यंत्र को जल से स्नान कराएं और फूल चढ़ाएं|
फिर घी का दीपक जलाकर इस मंत्र का जाप करें|
‘‘ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महा-लक्ष्म्यै नमः ।।
मंत्र की 11 माला का जाप करें। साथ ही श्री यंत्र की स्थापना कर उसका पूजन करें तो वह सिद्ध हो जाएगा।
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