विद्यार्थी एवं वास्तुशास्त्र

Seetesh Kumar Panchouli | 05-Nov-2014

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किसी भी भवन का जब निर्माण किया जाए तब उसमें वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का भलीभांति पालन करना चाहिए। चाहे वह निवास स्थान हो या व्यवसायिक परिसर है। इस युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो गया हैं और बदलते हुए जीवन-मूल्यों के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्य भी बदल गये हैं। शिक्षा व्यवसाय से जुड़ गई हैं और छात्र-छात्राएं व्यवसाय की तैयारी के रूप में ही इसे ग्रहण करते हैं। अधिकांश अभिभावकों एवं विद्यार्थियों की चिंता यह रहती है कि क्या पढा जाए ताकि अच्छा कैरियर निर्मित हों। आज के युग को देखते हुए ज्योतिष के माध्यम से शिक्षा का चयन उपयोगी हो सकता है। आज का भवन तो आलीशान होता है सभी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होता है फिर भी उसके अनुशासन व पढ़ाई के स्तर में निरंतर गिरावट आ जाती है बच्चे भी अध्ययन के प्रति रूचि नहीं दिखाते हैं।

भवन का निर्माण करते समय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से सफलता प्राप्त की जा सकती है।

प्राचीन काल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति होता था। विद्यार्थी किसी योग्य विद्वान के निर्देशन में विभिन्न प्रकार की शिक्षा ग्रहण करते थे। इसके अतिरिक्त उसे शस्त्र संचालन एवं विभिन्न कलाओं का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। किन्तु वर्तमान समय में यह सभी प्रशिक्षण लगभग गौण हो गये। शिक्षा की महत्ता बढ़ने व प्रतिस्पर्धात्मक युग में सजग रहते हुए बालक के बोलने व समझने लगते ही माता-पिता शिक्षा के बारे में चिंतित हो जाते हैं।

प्रतियोगिता के इस युग में लगभग सभी परिवार अपने बच्चों के कैरियर को लेकर काफी परेशान नजर आते हैं। बच्चों का न तो पढ़ने में मन लगता है और बड़ी मुश्किल से ही पास हो पाते हैं स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता है। इस कारण पढ़ने में काफी पिछड़ता जा रहा है। हम देखते हैं कि कई बच्चे खेलते-कूदते व मस्ती करते रहते हैं ज्यादा अध्ययन भी करते हुए नहीं पाए जाते हैं पर जब उनका परीक्षा परिणाम आता है तो वह बच्चे अच्छे नम्बरों से पास होते हैं। इसके विपरीत कई बच्चे अपना अत्यधिक समय अध्ययन में लगाते हैं। उन्हें परिवार के लोग भी काफी सहयोग करते हैं पर परीक्षा में या तो अनुत्तीर्ण हो जाते हैं या कम नंबरों से पास होते हैं।

जहां भी वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत अध्ययन कक्ष की बनावट हो तो उस कमरे में पढ़ने वाले विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करते हैं और पढ़ाई में पिछड़ते जाते हैं। बच्चों का कैरियर उनकी अच्छी पढ़ाई लिखाई पर ही निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में यदि माता-पिता एवं विद्यार्थी थोड़ी सी सतर्कता बरतें एवं वास्तु के कुछ साधारण से नियमों का पालन करें तो कम मेहनत कर अच्छे नंबरों से पास होंगे। उनका भविष्य भी उज्जवल होगा। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व उत्तर एवं ईशान दिशाएँ ज्ञानवर्धक दिशाएँ कहलाती हैं अतः पढ़ते समय हमें उत्तर पूर्व एवं ईशान दिशा की ओर मुँह करके पढ़ना चाहिए।

परिस्थितीवश यदि हमारा अध्ययन कक्ष पश्चिम दिशा में भी हो तो पढ़ते समय हमारा मुँह उपरोक्त दिशाओं की ओर ही होना चाहिए। विज्ञान के अनुसार इंफ्रारेड किरणें हमें उत्तरी पूर्वी कोण अर्थात ईशान कोण से ही मिलती हैं ये किरणें मानव शरीर तथा वातावरण के लिए अत्यन्त लाभदायक हैं जो शरीर की कोशिकाओं को शक्ति प्रदान करती हैं और शरीर में एकाग्रता प्रदान करती हैं।

  1. अध्ययन कक्ष हो सके तो भवन के पश्चिम या ईशान कोण में ही बनाना चाहिये। पर भवन के नैर्ऋत्य व आग्नेय में कभी भी अध्ययन कक्ष नहीं बनाना चाहिए।
  2. विद्यार्थियों को पढ़ते समय मूंह पूर्व या उत्तर की ओर रख कर ही अध्ययन करना चाहिए।
  3. विद्यार्थियों को दरवाजे की तरफ पीठ करके कभी भी अध्ययन नहीं करना चाहिये।
  4. विद्यार्थियों को किसी बीम या परछत्ती के नीचे बैठकर पढ़ना या सोना नहीं चाहिए इससे मानसिक तनाव उत्पन्न होता है।
  5. विद्यार्थी चाहे तो अपने अध्ययन कक्ष में सो भी सकते हैं। अर्थात् कमरे को स्टडी कम बेडरुम बनाया जा सकता है।
  6. स्टडी रुम का दरवाजा ईशान पूर्व दक्षिण आग्नेय पश्चिम वायव्य व उत्तर में होना चाहिये। अर्थात् पूर्व आग्नेय दक्षिण पश्चिम नैऋत्य एवं उत्तर वायव्य में नहीं होना चाहिये। स्टडी रुम में यदि खिड़की हो तो पूर्व पश्चिम या उत्तर की दीवार में ही होना चाहिए। दक्षिण में नहीं।
  7. विद्यार्थियों को सदैव दक्षिण या पश्चिम की ओर सिर करके सोना चाहिए। दक्षिण में सिर करके सोने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और पश्चिम में सिर करके सोने से पढ़ने की ललक बनी रहती है।
  8. अध्ययन कक्ष के ईशान कोण में अपने आराध्य देव की फोटो व पीने के पानी की व्यवस्था भी रख सकते हैं।
  9. किताबों का रॅक्स दक्षिण पश्चिम में रखे जा सकते हैं पर नैर्ऋत्य व वायव्य में नहीं रखना चाहिये। क्योंकि नैर्ऋत्य के रॅक्स की किताबें बच्चे निकाल कर कम पढ़ते हैं व वायव्य में किताबें चोरी होने का भय रहता है।
  10. किताबें स्टडी रुम में खुले रॅक्स में ना रखें। खुली किताबें नकारात्मक उर्जा उत्पन्न करती हैं इससे स्वास्थ्य भी खराब होता है अतः रॅक्स के ऊपर दरवाजा अवश्य लगायें ।
  11. यदि आप अच्छा कैरियर बनाना चाहते हैं तो स्टडी रुम में अनावश्यक पुरानी किताबें व कपड़े न रखें। अर्थात् किसी भी किस्म का कबाड़ा कमरे में नहीं होना चाहिए।
  12. अध्ययन कक्ष की दीवार व परदे का कलर हल्का आसमानी हल्का हरा हल्का बदामी हो तो बेहतर है। सफेद कलर करने पर विद्यार्थियों पर सुस्ती छाई रहती है।
  13. अध्ययन कक्ष के साथ यदि टायलेट हो तो उसका दरवाजा हमेशा बन्द रखें। टायलेट को ज्यादा ना सजायें । साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें।
  14. यदि कमरे में एक से अधिक बच्चे पढ़ते हैं तो उनके हँसते मुस्काते हुए सामूहिक फोटो स्टडी रुम में अवश्य लगायें इससे उनमे मिल जुलकर रहने की भावना विकसित होगी।
  15. यदि विद्यार्थी अपने अध्ययन में यथोचित सफलता नहीं पा रहे हैं तो अध्ययन कक्ष के द्वार के बाहर अधिक प्रकाश देने वाला बल्ब लगाएं जो 24 घंटे जलता रहे।
  16. यदि विद्यार्थी वास्तु के उपरोक्त सामान्य नियमों का पालन करते हैं तो उन्हें बहुत ज्यादा समय स्टडी रुम में बिताने की जरुरत नहीं रहेगी। उन्हें अन्य गतिविधियों जैसे खेलना कूदना इत्यादि के लिये समय भी मिलेगा साथ ही विद्यार्थी अच्छे नम्बरों से पास होकर अपने कैरियर और अपना भविष्य उज्वल कर सकेंगे।
  17. यदि विद्यार्थी कम्प्यूटर का प्रयोग करते हैं तो कम्प्यूटर आग्नेय से लेकर दक्षिण व पश्चिम के मध्य कहीं भी रख सकते हैं। ध्यान रहे ईशान कोण में कम्प्युटर कभी न रखें। ईशान कोण में रखा कम्प्युटर बहुत ही कम उपयोग में आता है।
  18. यदि सूर्य की सुबह की किरणें कमरे में आती हो तो खिड़की दरवाजे सुबह के वक्त खोलकर रखना चाहिये। ताकि सुबह की लाभदायक सूर्य की ऊर्जा का लाभ ले सके। पर यदि सूर्य की शाम की किरणें आती है तो बिलकुल न खोलें। ताकि दोपहर के वक्त के बाद की नकारात्मक ऊर्जा से बचा जा सके।
  19. इन साधारण किंतु चमत्कारिक वास्तुशास्त्र सिद्धांतों के आधार पर यदि अध्ययन कक्ष का निर्माण किया जाए तो उत्तरोतर प्रगति संभव है।