व्यक्ति को बर्बाद कर सकता है पितृ दोष, श्राद्ध में इन उपायों से बन सकती है जिंदगी
Indian Astrology | 11-Jul-2022
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जन्मकुंडली में नौवें भाव को पिता, पूर्वज, भाग्य और किस्मत का कारक माना जाता है। इस घर में सूर्य और राहू की युति और अन्य ग्रहों के साथ रहने पर पितृ दोष उत्पन्न हो सकता है। इससे भाग्य और शुभता दोनों समाप्त हो जाती हैं। कुंडली में पितृ दोष का मतलब है कि उस व्यक्ति के पितृ उससे प्रसन्न नहीं हैं या किसी कारण से असंतुष्ट हैं। परिवार में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु होने या मृत परिजन की आत्मा को सम्मान ना देने पर भी यह दोष उत्पन्न हो सकता है।
आमतौर पर पितृ दोष जीवन में दुख और दुर्भाग्य का कारण बनता है। इससे धन का नुकसान, परिवार में अनबन, कानूनी केस या संतान पैदा ना कर पाने जैसी दिक्कतें आती हैं। पितृ दोष से पीडित व्यक्ति को भाग्य का लाभ नहीं मिल पाता है और उसे अपने जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है।
हिंदू शास्त्रों के अनुसार मृत पूर्वजों को प्रसन्न एवं संतुष्ट करने से जीवन में खुशियां आती हैं और शांति बनी रहती है।
Book Pitra Dosh Puja Online
पितृ दोष के लिए ग्रहों की स्थिति
कुंडली में कुछ ग्रहों की स्थिति बनने पर पितृ दोष पैदा होता है। ग्रहों की निम्न स्थितियों में पितृ दोष बन सकता है :
- जब शुक्र, शनि और राहू या इनमें से दो ग्रह कुंडली के पंचम भाव में स्थिति हो तो शनि अशुभ हो जाता है और व्यक्ति के जीवन पर गलत प्रभाव डालता है।
- अगर केतु कुंडली के चौथे भाव में हो तो उस व्यक्ति को चंद्रमा के अशुभ प्रभाव मिलते हैं।
- यदि बुध या केतु या दोनों ग्रह कुंडली के पहले या आठवें भाव में हो तो मंगल अशुभ प्रभाव देना शुरू कर देता है।
- जब कुंडली के तीसरे या छठे भाव में चंद्रमा बैठा हो तो उस व्यक्ति को बुध के अशुभ प्रभाव झेलने पड़ते हैं।
- शुक्र, बुध या राहू, इनमें से कोई भी दो ग्रह या तीनों ग्रह एक साथ दूसरे या पांचवे या नौवें या बारहवें ग्रह में बैठे हों तो बृहस्पति अशुभ प्रभाव देने लगता है।
- सूर्य या चंद्रमा या राहू या इनमें से कोई भी दो ग्रह एक साथ या तीनों ग्रह एकसाथ सातवें भाव में बैठे हों तो व्यक्ति को जीवन में शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभाव मिलने शुरू हो जाते हैं।
- सूर्य, चंद्रमा या मंगल या इनमें से दो ग्रहों के भी एक साथ 10वें या 11वें भाव में होने पर शनि अशुभ प्रभाव देने लगता है।
- सूर्य या शुक्र या दोनों ग्रहों के कुंडली के 12वें भाव में राहू के अशुभ प्रभाव शुरू हो जाते हैं। ग्रहों की इस स्थिति में राहू का प्रकोप झेलना पड़ता है।
- यदि चंद्रमा या मंगल छठे भाव में हो तो केतु के नकारात्मक प्रभाव मिलने शुरू हो जाते हैं।
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कुंडली में पितृ दोष क्यों होता है?
कुंडली में पितृ दोष पूर्वजों के लिए किए गए गलत कार्यों की वजह से पैदा होता है।
- केवल पूजा-पाठ करने से कोई भी व्यक्ति गलत कार्यों से मुक्त नहीं हो सकता है। उन परिस्थितियों और दुविधाओं का सामना करना पड़ता है जो उनके पूर्वजों ने उन पर थोपी हैं।
- क्रूर व्यवहार, अपमानजनक प्रकृति, मनुष्य, पशु या किसी भी जीव के प्रति शारीरिक और मानसिक क्रूरता कुंडली में पितृ दोष का कारण बन सकती है।
- किसी चीज की चोरी और डकैती, चीजों को जबरदस्ती वश में करना, दूसरों को नियंत्रित करके या अनैतिक तरीके से धोखा देने जैसे अपराध करने पर पितृ दोष पैदा होता है।
- गलत कार्यों के माध्यम से खजाना, धन की वृद्धि या अन्य संपत्ति को अवैध रूप से कब्जा करना भी पितृ दोष का कारण बन सकता है।
- किसी भी जीवित प्राणी के साथ शारीरिक या मानसिक रूप से दुर्व्यवहार करना भी इस दोष का कारण बन सकता है।
- अफवाहें फैलाने, झूठे आरोप लगाने या जानबूझकर दूसरों के बारे में गलत बात फैलाने से भी यह दोष लग सकता है।
उपरोक्त कारण ग्रहों की गति के अलावा पितृ दोष के लिए भी उत्तरदायी हैं। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रहों के विशिष्ट स्थान में होने के कारण पितृ दोष बन सकता है। कुंडली में पितृ दोष को दर्शाने वाले ग्रह इस प्रकार हैं :
सूर्य : पिता और पूर्वजों का प्रतीक है।
चंद्रमा : मन और मां का प्रतीक है।
शनि : गलत कर्मों, दायित्वों, ऋणों और समस्याओं को दिखता है।
नौवें भाव : पूर्व जन्म और पूर्वजों को दर्शाता है।
दूसरे भाव : परिवार, पूर्वज और विरासत को दर्शाता है।
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पितृ दोष के प्रभाव
जीवन पर पितृ दोष का प्रभाव निम्न रूप से दिख सकता है :
- फेफड़ों और नसों में चोट लगने का खतरा रहता है।
- परिवार में किसी व्यक्ति का बेरोजगार होना।
- परिवार में किसी व्यक्ति का लंबे समय तक बीमार रहना।
- किसी करीबी का बार-बार मिसकैरेज होना।
- बच्चों के दांतों और मसूड़ों का कमजोर होना।
- विवाह में देरी होना या रुकावट आना।
- बच्चे को कोई बीमारी या मानसिक समस्या होना।
- रिश्ता टूटना या संबंधों में खटास आना।
- गरीबी या तंगी रहने से समस्याएं पैदा होना।
- बेचैनी, डर, परिवार में अनबन रहना।
- पितृ दोष से पीडित व्यक्ति का कर्ज में दबा होना।
- सपने में सांप दिखाई देना।
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पितृ दोष दूर करने के उपाय
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष चल रहा है तो वह निम्न उपायों से इस दोष के प्रभाव को कम कर सकता है।
श्राद्ध : पितृ पक्ष में ब्राह्मणों को भोज करवाने से लाभ होता है। इससे पूर्वजों की अशांत आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति को अपने बुरे कर्मों से मुक्ति मिल जाती है। श्राद्ध के दिनों में गाय और भिखारियों को भोजन करवाने से भी लाभ होता है।
पिंड दान : मुट्ठीभर पके हुए चावलों को तिल के बीजों में डाल दें और इससे गोल आकार के लड्डू तैयार कर लें। इन्हें सामने रखकर अपने पूर्वजों को याद करें और उनका ध्यान करें। इस पिंड पर काले तिल के बीजों के साथ पानी और दही डाल दें। अब इस पर चंदन का पेस्ट और कुछ फूल अर्पित करें और इसे उठाकर उस जगह रख दें जहां पक्षी इसे खा सकें।
तर्पण : ईश्वर, संत या पूर्वजों की आत्मा को जल अर्पित करने का तर्पण कहते हैं। तर्पण करने से बड़ा कोई पुण्य कर्म नहीं है। नदी या झील के किनारे तर्पण किया जाता है।
पितृ सूक्त पूजा : अमावस्या और चर्तुदशी के दिन पितृ सुख पूजा से भी पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। इसके अलावा गायत्री मंत्र पढ़ते हुए सूर्याेदय के समय सूर्य की ओर देखने से कुंडली में सूर्य मजबूत होता है और पितृ दोष का अशुभ प्रभाव कम हो सकता है।
पितृ दोष निवारण मंत्र
ऊं पित्राभय देवताभय महायोगिभ्येच छ:
नमं: स्वाह: स्वाध्येय छ नित्यामेव नम:।।
मृत आत्मा की शांति के लिए पितृ दोष निवारण पूजा में पितृ दोष निवारण मंत्र का जाप करना लाभकारी होता है।