नवरात्र का सातवां दिन: जानिए, काल का नाश करने वाली, मां कालरात्रि की पूजन विधि, मंत्र, आरती और महत्व

Indian Astrology | 30-Mar-2020

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नवरात्र के सातवें दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि काल का अंत करने वाली हैं। वे अपने भक्तों पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखती हैं और उनके सभी विघ्न दूर करती हैं। मां शुभ फल देती हैं इसलिए इन्हें ‘शुभंकरी’ के नाम से भी जाना जाता है। मां अपने भक्तों के सभी तरह के भय दूर कर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए भक्तों को पूरे विधि-विधान से इनकी आराधना करनी चाहिए। तो, आइए, आपको बताते हैं मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजन विधि, मंत्र, आरती और महत्व के बारे में...

बेहद भयानक है मां कालरात्रि का स्वरूप

देवी कालरात्र का स्वरूप ऐसा है कि काल उनका रूप देखकर ही भाग जाए। उनके शरीर का रंग अंधकार के समान काला है। उनके बाल बिखरे हुए हैं। उनके गले की माला बिजली की भांति चमकती है। उनके श्वास से अग्नि निकली है।

देवी पुराण के अनुसार मां के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल एवं गोल हैं जिनमें से बिजली निकलती है। मां के चार हाथ हैं जिनमें से एक में वे खड्ग यानी तलवार और दूसरे में लौह अस्त्र है। तीसरा हाथ अभयमुद्रा में और चौथा हाथ वर मुद्रा में है।

मां का वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है जो सभी जीव-जन्तुओं में सबसे परिश्रमी माना जाता है। वह निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को इस संसार का विचरण करा रहा है। माता का यह स्वरूप ऋद्धि-सिद्धि प्रदान करने वाला है।

मां कालरात्रि की पूजा का महत्व

देवी भागवत पुराण के अनुसार जो भी मां की सच्चे मन से उपासना करता है उसके लिए कुछ भी प्राप्त करना दुर्लभ नहीं होता। मां अपन भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं। आदिशक्ति मां अपने भक्तों के कष्टों का जल्द ही निवारण कर देती हैं।

काल से बचाती हैं मां कालरात्रि

माता कालरात्रि काल का नाश करने वाली हैं। नवरात्र के सातवें दिन इनकी पूजा करने से मां अपने भक्तों की काल से रक्षा करती हैं, अर्थात् उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती। पुराणों में इन्हें सभी सिद्धियों की देवी कहा गया है इसलिए तंत्र साधना और पूजा-अर्चना के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है।

तंत्र साधना के लिए है महत्वपूर्ण दिन

नवरात्र के सातवें दिन का तंत्र साधना के लिए विशेष महत्व होता है। तंत्र साधना करने वाले मध्यरात्रि को इस दिन तंत्र-मत्र के साथ मां कालरात्रि की विशेष पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी के नेत्र खुलते हैं जिससे भक्तों के लिए उनके दर्शन के द्वार खुल जाते हैं।

ऐसे करें मां कालरात्रि की पूजा  

नवरात्र के सातवें दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद नवरात्र के अन्य दिनों की तरह ही पूरे विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना करें। देवी को अक्षत, गंध, रातरानी पुष्प अर्पित करें। इस दिन पूजा में गुड़़ का प्रयोग करने का विशेष महत्व होता है इसलिए मां कालरात्रि की पूजा करते समय नैवेद्य में गुड़ को ज़रूर शामिल करें। पूजा समाप्त होने के बाद ब्राह्मणों को यह गुड़ दान कर दें। मान्यता है कि ऐसा करने से साधक शोकमुक्त होता है। मां आकस्मिक संकट से उसकी रक्षा करती हैं।


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रात्रि के समय करें विशेष पूजा

मां कालरात्रि को काली का ही रूप माना जाता है। इनकी उत्पत्ति देवी पार्वती से हुई है। मां कालरात्रि की पूजा करके आप अपने क्रोध पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। दिन में तो मां की पूजा नवरात्र के अन्य दिनों की तरह ही की जाती है लेकिन रात्रि में विशेष विधान के साथ मां कालरात्रि की पूजा की जाती है।

दुर्गा सप्तशती पाठ का महत्व

नवरात्र के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ कराने से आपको मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इसमें सामूहिक कल्याण, विश्व रक्षा, महामारी-नाश, विपत्ति-नाश, भय-नाश, पाप-नाश, शक्ति प्राप्ति के लिए अलग-अलग मंत्र दिए गए हैं। इनके उच्चारण से वित्त, स्वास्थ्य, तनाव, विवाह, संतान आदि से संबंधित परेशानियां समाप्त होती हैं। भूत, प्रेत तथा नकारात्मक शक्तियां आप से दूर रहती हैं।

माता कालरात्रि की पौराणिक कथा

माता कालरात्रि की उत्पत्ति और नाम से संबंधित एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था तब इससे चिंतित होकर सभी देवता शिवजी के पास गएं और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगें। भगवान शिव ने माता पार्वती से राक्षसों का वध कर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिवजी के कहे अनुसार माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। जब दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों दैत्य रक्तबीज उत्पन्न हो गएं। इसे देख दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को जन्म दिया। मां का यह रूप बेहद भयानक था। उनके बाल बिखरे हुए थे। उनका रूप और रंग रात्रि की भांति काला था। मां कालरात्रि ने अपने इस भयानक रूप में रक्तबीज का वध किया और इस बार उसके शरीर से निकले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुंह में भर लिया। इस तरह मां ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध किया और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति दिलाई। 

मंत्र   

ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

प्रार्थना

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।

वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थ: हे मां! सर्वत्र विराजमान और कालरात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता/करती हूं। हे मां, मुझे पाप से मुक्ति प्रदान कर!

ध्यान

करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।

कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥

दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।

अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥

महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।

घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥

सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।

एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

स्तोत्र पाठ

हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।

कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥

कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।

कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥

क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।

कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

मां कालरात्रि की आरती

कालरात्रि जय जय महाकाली। काल के मुंह से बचाने वाली॥

दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा। महाचंडी तेरा अवतारा॥

पृथ्वी और आकाश पे सारा। महाकाली है तेरा पसारा॥

खड्ग खप्पर रखने वाली। दुष्टों का लहू चखने वाली॥

कलकत्ता स्थान तुम्हारा। सब जगह देखूं तेरा नजारा॥

सभी देवता सब नर-नारी। गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥

रक्तदन्ता और अन्नपूर्णा। कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥

ना कोई चिंता रहे ना बीमारी। ना कोई गम ना संकट भारी॥

उस पर कभी कष्ट ना आवे। महाकाली माँ जिसे बचावे॥

तू भी भक्त प्रेम से कह। कालरात्रि माँ तेरी जय॥

माता कालरात्रि का पसंदीदा फूल

माता कालरात्रि को रात की रानी का फूल (Night Blooming Jasmine) बहुत पसंद है इसलिए उनकी पूजा करते समय उन्हें ये फूल ज़रूर अर्पित करें।

शुभ रंग

मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा नीले या बैंगनी रंग के वस्त्र पहनकर करें। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में होता है जिसका रंग बैंगनी है। इसलिए बैंगनी या इससे मिलते-जुलते रंग इस दिन के लिए शुभ होते हैं।


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